मदिने में | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©मजीदबेग मुगल “शहज़ाद”
कितना दर्द भरा है सीने में ।
क्या मजा आता है पीने में।।
रूठकर दिल जलाकर खुश रहे।
ऐसी हरकत हो कमीने में।।
उदासी छा गई चेहरे पे।
कब दिल लगता है करीने में।।
नींद ने तो कब का साथ छोडा।
डर सुराग पड़ता है सफिने में।।
हराम का सरमाया खूब मिला।
जाकर क्या करता मदिने में ।।
खुदा मोहब्बत करता उनसे ।
मेहनत कर खुश्बु पसीने में।
कपडों से हैसियत जानते ।
कीमत तो खदानी नगीने में ।।
‘शहज़ाद ‘हैसियत इन्सान की ।
आलीशान उसके जीने में।।
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