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प्रकृति की सीख | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©अनिता चन्द्राकर

परिचय- दुर्ग, छत्तीसगढ़


 

 

नई कोंपलें ताजी ताजी, खिलखिलाती नव कलियाँ।

रंग बिरंगे फूलों की मकरंद पर, झूम रही तितलियाँ।

 

बहका बहका सा चमन, लहराती चुनरी हरियाली।

नदियों के जल तल पर, क्रीड़ा करती नभ की लाली।

 

आम्रमंजरी की मादक महक, प्रीत उर में उपजाती।

गेहूँ सरसों अलसी खेत में, धरती का सौंदर्य बढ़ाती।

 

हर मौसम में रूप सुहाना, प्रकृति से सीखें हम जीना।

ठंडी गर्मी और बरसात, नहीं भूलती वो खिलखिलाना।

 

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