हे माँ अम्बे | ऑनलाइन बुलेटिन
©अमिता मिश्रा
परिचय- बिलासपुर, छत्तीसगढ़
हे माँ अम्बे, हे जगदम्बे, हे मात भवानी।
तेरी महिमा अपरंपार है माता जगकल्याणी।
कर दो न कृपा हमपे भी माँ हम है अज्ञानी।
हर भूल क्षमा कर दो माँ कर बैठे जो नादानी।
सजा लिए है हमने घर द्वार तुम्हारा मंदिर।
मन मंदिर में आन बसों माँ हे कल्याणी।
हलवा पूरी भोग लगाऊ मन से माँ तुझे मनाऊ।
तुम ही तो हो कण कण में धरती में और अम्बर में।
बखान करू तेरी महिमा का हे महिसासुरमर्दिनी।
नवरात्रि, नवदिवस करे हम कन्या पूजन।
नित नित शीश झुकाएं माँ हम तेरे आंगन।
लाल चुनरी सोलह सृंगार तुमको है भाते।
दुःख हरने वाली वैष्णवी माँ सब तेरे दर आते।
अपने बच्चों का तुम सब मंगल करती हो।
हर पीड़ा हर लेती हो माँ सब अमंगल हरती हो।
अमिता करे कैसे गुणगान माँ तुम सब जानती हो।
हर दिन, हर घर मे नारी अपमानित होती है।
हर नारी में तुम हो बस ये भान करा दो माँ।
दानव को फिर से नारी शक्ति की याद दिला दो माँ।
हे माँ अम्बे हे जगदम्बे हे माँ कल्याणी।
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