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देखो इस निगाहों में…

©गायकवाड विलास

परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र


 

 

खुले आसमां के नीचे चूल्हा हमारा जल रहा है,

लम्हा-लम्हा इस जिंदगी का देखो गुज़र रहा है।

किसे कहें अपनी ये दर्द भरी दास्तां इस संसार में,

ऐसे ही ये देश हमारा उन्नति की ओर बढ़ रहा है।

 

निगाहों में बुनें हुए है रंग-बिरंगे सपने हजार,

अपना भी हो यहां पे हंसता खेलता घर-परिवार।

मगर कौन समझ पाया है जिंदगी के उन रंगों को,

यही तकदीर समझकर,निकलें है हम जिंदगी के राहों पर।

 

देखो”सुजलाम सुफलाम”बना है ये देश हमारा,

और चारों दिशाओं में गुंज रहा है समृद्धि और उन्नति का नारा।

रोटी,कपड़ा और मकान उन्हीं वादों की मिलती हमें दुवाएं,

यही सौगातें उनकी हमारे लिए,कहता है ये मन बेचारा।

 

उस अंबर का छत और धरती मां का ये आंगन,

मुसाफ़िर बनके चले रही है जिंदगी और उजड़ा हुआ है जीवन।

मन में उठें है तुफां और वो निगाहें देख रही है संसार को,

चारों ओर सुखों की बरसातें और हमारे नैनों में रोता हुआ सावन।

 

खुले आसमां के नीचे चूल्हा हमारा जल रहा है,

लम्हा-लम्हा इस जिंदगी का देखो गुज़र रहा है।

जलती आग चूल्हे में,यही हमारी जिंदगी की दास्तां,

देखो इस निगाहों में,देश हमारा कैसे खिल रहा है – – कैसे खिल रहा है।

 

Gaikwad Vilas, Latur, Maharashtra
गायकवाड विलास

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