अतीत की परछाई | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन
©अशोक कुमार यादव
परिचय- राष्ट्रीय कवि संगम इकाई के जिलाध्यक्ष, मुंगेली, छत्तीसगढ़.
मेरे अतीत की परछाई धुंधली,
मुझे याद आ रही है बीते दिन।
दिवास्वप्न में दिखाई देता चित्र,
इंद्रायुध अर्धवृत्ताकार रंगीन।।
मैं उतरा भू पिण्ड सा चमकता,
अर्ध रात्रि का प्रहर नींद में डूबा।
देखकर स्तब्ध थे चांद और तारें,
मुझे आवाज दी मेरी महबूबा।।
ओ भविष्य गामी अभिजन नर,
बदहाली देख तू हरित धरा की।
स्वर्ग का राज वैभव त्याग अभी,
हे!महापुरुष दुःख हटा जरा की।।
प्राचीन देश का नवीन विचार लिए,
खेल मेरी अंगों से कोई नवीन खेल।
हम दोनों में विद्युत तरंग की शक्ति,
शिशु का विस्तार कर बनाकर मेल।।
भूत को भूलाकर वर्तमान जिए जा,
यही पल सुखद और आनंद वाला।
मत भाग अपने कर्म से सुदूर अनंत,
बनकर राजा, राज कर पहन माला।।
ये भी पढ़ें :
भ्रष्टाचार इसलिए होता है क्योंकि हम स्वयं बेईमान हैं | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन