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नवदुर्गा की महिमा | ऑनलाइन बुलेटिन

©उषा श्रीवास

परिचय– बिलासपुर छत्तीसगढ़


 

 

नवरात्र में माता नवदुर्गा नव नव रूप धरे।

हर रुप में अपनी महिमा का बखान माँ अपने ही करे।।

 

प्रथम रूप है शैलपुत्री तु दुख हरिणी सब संकट करती दूर।

हिमराज सुता तेरी कृपा हो जिस पर माता वो होता न मजबूर।।

 

द्वितीय रूप है ब्रम्हचारिणी माता क्लेश सभी तुम मिटाते।

तु सबकी करे रखवाली जो चौखट पर आते।।

 

तृतीय रूप चंद्रघंटा देवी देख दुष्ट प्रकम्पित होते सारे।

जो भक्त हैं तेरे प्यारे क्या कोई उसका बिगाड़े।।

 

चतुर्थ रूप माता कुष्मांडा उल्लास बने दास तुम्हारा।

जिसकी तु पालनहारा तेरा दर लागे उसको प्यारा।।

 

पंचम रूप स्कंद तु सब पर कृपा यूं ही करना।

चरणों में देकर स्थान बहाती सदा प्यार का झरना।।

 

षष्ठी रूप कात्यायनी तुम कात्यान ऋषि की हो सुता।

कपट, छल पले मन किसी के कभी तो

पापभंजिनी पापनाश करके कहलाती महापुनीता।।

 

सप्तम रूप में कालरात्रि पूजा पाठ की अग्नि तू ही मधुशाला की हाला।

आग में बाग लगाती मैया सागर पीती बनकर ज्वाला।।

 

अष्टम रूप में हो महागौरी जग में बनकर आती अमृत रस का प्याला।

तुम्हारे आने से नवनिधियां स्वयम् आती बनकर भूखों का निवाला।।

 

नवम् रूप में सिद्धिदात्री हो सुख समृद्धि और मोक्ष देने वाली माता।

कामना हिय पूरण करती जलाये ज्योति सदा जो दुखियों को दुख नही सताता।।


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