यादों की चादर | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©अनिता चन्द्राकर
कुछ मीठी यादों की चादर,
गुनगुनी धूप सी गर्माहट।
कौन भूल पाता बचपन,
ताज़गी भरी वो खिलखिलाहट।
निराशा के अचूक वार पर,
यादें ही सहना सिखाती।
मन में भर कर उमंग,
जीने की राह दिखाती।
यादों की पोटली भरते चलें,
भूलकर सारी कडुवाहट।
सुकून देती है बाग में ज्यों,
चिड़ियों की चहचहाहट।
तन्हाई में नम आँखों की सखी,
यादों की थपकी।
जादू की झप्पी बन जाती,
सुहानी यादें सबकी।
ज़िंदगी हो बहती नदियों की तरह,
उर्वरा मिट्टी की हो चिकनाहट।
कभी सोचें पुरानी बातें हम,
होंठों में आ जाए मुस्कुराहट।
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