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दलित मुक्ति का शंखनाद है ‘सुलगते शब्द’ : डॉ. विवेक शंकर | newsforum

पुस्तक समीक्षा- सुलगते शब्द

(दलित काव्य संकलन)

 

‘सुलगते शब्द’ श्याम निर्मोही द्वारा संपादित सद्य: प्रकाशित दलित-विमर्श का एक ऐसा सशक्त दस्तावेज है, जिसके फलक में 65 दलित साहित्यकारों की उम्दा रचनाएं संगृहीत की गईं हैं। 280 पृष्ठों में 65 कवियों की 156 कविताएं महज़ कविताएं नहीं बल्कि इनमें युग-युग से व्याप्त शोषण, अन्याय, उत्पीड़न, ऊंच-नीच का भेदभाव, अकथनीय मानवीय पीड़ा और वेदना का भयावह संसार सुलगते शब्दों में आबद्ध किया गया है। ओमप्रकाश वाल्मीकि की ‘कभी सोचा है’, ‘सदियों का संताप’, ‘शब्द झूठ नहीं बोलते’, सूरजपाल चौहान की ‘उसका खुश होना’, डॉ. सुशीला टाकभौरे की ‘सफाई कामगार’ ‘सूरज तुम आना’ सचमुच दलित-विमर्श की बेमिसाल कविताएं हैं।

 

‘सदियों का संताप’ में ओमप्रकाश वाल्मीकि की पीड़ा, वेदना इस प्रकार बयां होती है- “बिता दिए हमने हजारों वर्ष बस इस इंतजार में, कि भयानक त्रासदी का युग-अधबनी इमारत के मलबे में, दबा दिया जाएगा किसी दिन, जहरीले पंजों समेत “तो सूरजपाल चौहान की ‘नई पहचान’ कविता में दलितों में चेतना जागृत होने के फलस्वरूप फिज़ां में परिवर्तन का एक नया संसार इस प्रकार परोसा गया है- “जिस दिन देश के पिछड़े वर्ग के लोगों में; जागेगी चेतना; उस दिन मच जाएगा हा-हाकार।” सामाजिक विषमता आज भी बदस्तूर किस प्रकार जारी है, इसे डॉ. सुशीला टाकभौरे ‘सोचो जरा’ शीर्षक कविता में नग्न यथार्थवादी धरातल पर इस प्रकार उघाड़ती हैं- “लॉकडाउन में जैसे सबको थी वेतन के साथ छुट्टी; नहीं मिली सफाई कामगारों को यह सुविधा; क्योंकि अपने हर काम की तरह नहीं कर सकते थे इसे सवर्ण।” उनकी कविता ‘कब होगा हमारा भारत देश महान’ में एक आशावादी संदेश अभिव्यक्त हुआ है। वह कहतीं हैं कि हमारा समाज बीमार मानसिकता से एक-न-एक दिन अवश्य मुक्त होगा और परिवर्तन की उजास जीवन में अवश्य आयेगी तथा दलितों का जीवन भी कभी-न-कभी अवश्य विहंस उठेगा।

 

दलित विमर्शकारों में डॉ. जयप्रकाश कर्दम ने भी इस संग्रह में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। छप्पर (1994), करुणा, श्मशान का रहस्य सरीखी रचनाओं से अपनी लेखनी का लोहा मनवाने वाले डॉ. जयप्रकाश कर्दम की ‘चुप्पी’ कैद, नागरिक समाज इत्यादि कविताएं अद्भुत हैं। इनकी कविताओं में भी जहां उत्पीड़न, शोषण, अन्याय का मानवीय संसार सृजित हुआ है, वहीं डॉ. राधा‌ वाल्मीकि की कविता में क्रांति का महत् संदेश इस प्रकार रूपायित हुआ है- “घन से भी घनघोर हो चुकी, पीड़ा निकलनी चाहिए, असमान अस्पृश्यतायुक्त व्यवस्था बदलनी चाहिए।” मौजूदा सामाजिक व्यवस्था में समाज के तथाकथित ठेकेदारों, सामंती सोच, सवर्णों की दोगली मानसिकता, धार्मिक बाह्याडंबरों इत्यादि बहुविध विषयों को ‘सुलगते शब्द’ में स्थान मिला है।

 

श्याम निर्मोही की लाज़वाब कविता ‘सुलगते हैं शब्द’ इस संग्रह की एक विशिष्ट कविता है, जिसमें कवि ने चंद पंक्तियों‌ में सदियों से कराहती दलित जीवन की व्यथा को इस प्रकार साकार किया है- “सदियों का संताप, उत्पीड़न मिटाने के लिए, वंचितों को अधिकार दिलाने के लिए, अस्पृश्यता विषमता और घृणा मिटाने के लिए, बरसते हैं शब्द, सुलगते हैं शब्द।” इनकी ‘मैं विप्लव रचता हूं’ कविता भी बहुत कुछ कहती‌ है और पाठकों को बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर करती है। डॉ. नरेंद्र वाल्मीकि, डॉ. बाबूलाल चांवरिया, राजनलाल जावा ‘निर्मोही’, जयप्रकाश वाल्मीकि, डॉ. कर्मानंद आर्य, जोगेदर सिंह, रंजू राही, डॉ. सुरेखा, दीपक मेवाती वाल्मीकि, डॉ. रामावतार सागर मेघवाल, डॉ. कार्तिक चौधरी, डॉ. पूनम तुषामड़, प्रियंका हंस सहित सभी रचनाकारों की रचनाऍं ‘सुलगते शब्द’ की विशिष्ट उपलब्धियां हैं‌। इनमें दलितों की स्थिति, दलितों के प्रति सवर्णों का व्यवहार, दलितों का उत्पीड़न, शोषण, दलितों की विद्रोहात्मकता, दलितों में निहित मनुष्यता इत्यादि दलित-चिंतन के विशिष्ट पक्ष त्रासद अनुभव के साथ साकार हुए हैं। इन कवियों का दलित चिंतन दलितों की विविध समस्याओं से संबंधित दलितों की मुक्ति का चिंतन है। वस्तुतः ‘सुलगते शब्द’ काव्य कृति अपनी पूरी संवेदना और गहराई के साथ कहीं-न-कहीं पृष्ठ दर पृष्ठ दलित-मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है।

 

इस संकलन के संपादक अनुज श्याम निर्मोही ने बड़े-बड़े नामचीन साहित्यकारों के साथ-साथ नई पीढ़ी के साहित्यकारों को एक मंच प्रदान कर स्तुत्य कार्य किया है। सम्पादक श्याम निर्मोही ने एक साथ 65 दलित साहित्यकारों की अनेक कविताओं का संकलन करके इन कवियों की कलम की धार को और अधिक प्रभावी और पैनी बनाने की दिशा में एक सार्थक और प्रशंसनीय कार्य किया है। विशेषकर शोधार्थियों के लिए ये पुस्तक बहुत ही महत्वपूर्ण व उपयोगी है। इस हेतु वह नि:संदेह बधाई के पात्र हैं‌। कोटिश:कोटिश: शुभकामनाऍं ।

 

पुस्तक प्राप्ति सम्पर्क सूत्र:- श्याम निर्मोही-संपादक:-8233209330

अमेज़न व सीधे प्रकाशक से भी प्राप्त की जा सकती है….

प्रकाशक- सिद्धार्थ बुक्स, गौतम बुक सेन्टर, दिल्ली ।

पृष्ठ-280 ,संकलन मूल्य:- ₹200 ,…..


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