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मुझको हवा से चोट लगती है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©भरत मल्होत्रा

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र


 

 

इश्क से चोट लगती है हया से चोट लगती है,

मेरे टूटे हुए दिल को वफा से चोट लगती है,

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तबस्सुम लब पे हो और आस्तीनों में छुपे खंजर,

ज़माने की मुझे ऐसी अदा से चोट लगती है,

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जड़ों से जो जुड़े हों आंधियां भी झेल लेते हैं,

मैं टूटा फूल हूँ मुझको हवा से चोट लगती है,

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बिना तेरे नहीं कटती है मेरी ज़िंदगानी अब,

मुझे लंबी उमर की बददुआ से चोट लगती है,

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मिट्टी में मिला डाली जिसकी अस्मत दरिंदों ने,

उस मासूम बच्ची को हिना से चोट लगती है,

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दूरियां जीत जाती हैं जिदों की जंग में अक्सर,

अपनों की बेमतलब अना से चोट लगती है,

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