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बात नहीं बन रही | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©अशोक कुमार यादव

परिचय- मुंगेली, छत्तीसगढ़, राष्ट्रीय कवि संगम इकाई के जिलाध्यक्ष.


 

 

देख लिया मेहनत करके,

मैं अभी भी खड़ा हूं वहीं।

अब क्या करूं तू ही बता?

मेरी बात नहीं बन रही।।

 

दावानल सदृश भ्रष्टाचार,

निगल गया करके खाक।

मृदु मांस के लोथे के लिए,

चील, कौए रहे थे ताक।।

 

बिखर गया चिता,भस्म धरा,

आत्मा उड़ गयी नील गगन।

चला गया एक प्रतिद्वंदी कह,

भेड़िए नाच रहे थे हो मगन।।

 

देख रहा था बनकर भूत-प्रेत,

लेन-देन का था झोलम-झोल।

नौकरी के नाम पर लुटाते जन,

मची थी चहूंओर हल्ला बोल।।

 

यहां फले-फूले प्रभुत्व वनराज,

निरीह प्राणी हो गए घर से बेघर।

अंधी दौड़ में भाग रहे हैं कर्मवीर,

सब डर से कांप रहे हैं थर-थर।।

 

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