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लक्ष्य की ओर …

©अशोक कुमार यादव

परिचय- राष्ट्रीय कवि संगम इकाई के जिलाध्यक्ष, मुंगेली, छत्तीसगढ़.


 

दौड़ सकता है तो दौड़, भाग सकता है तो भाग।

मंजिल पाने के लिए, अंतर्मन में लगी है आग।।

ठण्डे खून के उबलने तक या खून सूखने तक।

पागलपन की जुनून तक या मुर्दा बनने तक।।

जब तक मंजिल ना मिले, राहों में तुम रुकना नहीं।

चुनौतियों के सामना करना, स्वयं कभी टूटना नहीं।।

जीवन की सांसें फूलने तक या सांसें रुकने तक।

कंकाल के राख उड़ने तक या चमड़े गलने तक।‌।

कुछ विरोधी और बुरे लोग, तुम्हें पथ से भटकायेंगे।

खूब हंसी उड़ेगी गलियों में, जन भ्रमजाल फैलायेंगे।।

मिट्टी में दफन होने तक या सब कुछ खत्म होने तक।

आत्मा की शुद्धि होने तक या परमात्मा दिखने तक।।

डटे रहना मैदान में वीर योद्धा, शत्रुओं को करने ढेर।

धीरज रखना साहस भरकर, जीत में भले होगी देर।।

हार के काली रात के बाद, आयेगी सफलता भोर।

दृढ़ आत्मविश्वास से बढ़ा, कदम लक्ष्य की ओर।।

 

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