त्रिगुणातीत | ऑनलाइन बुलेटिन
©संतोष यादव
परिचय- मुंगेली, छत्तीसगढ़.
हे! भोले बाबा मुझको भी त्रिगुणातीत बना दो न,
एक बार पुत्र कहकर अपने श्रीचरणों से लगा लो न ।
हे! आदिगुरु हे! शिव – शंकर
दे दो मुझको वरदान अभ्यंकर ।
मुझको भी अपनी तरह बना दो ,
मेरे मूल स्वरूप का बोध करा दो ।
कर लो स्वीकार निश्चल भक्ति मेरी,
दे दो आत्मज्ञान की शक्ति मेरी ।
मैं भी आपकी तरह सन्यासी रहूं,
अजर , अमर , और अविनाशी रहूं ।
मैं रहूं हमेशा निर्गुण स्वरूप में स्थित,
त्रिगुणातीत बनकर मैं जीवन जिऊं।
कर्ता भाव का लोप हो मुझसे ,
दृष्टाभाव का भाव जगा दो न ।
स्थितप्रज्ञ बुद्धि को पाऊं,
स्थिर बुद्धि से ध्यान लगाऊं ।
हो उदासीन स्वभाव मेरा ,
न रहे मुझमें सुखों – दुखों का घेरा ।
संसार के विष को धारण कर ,
बन जाऊं मैं नीलकंठ ।
अनाशक्त रहूं मैं जीवन भर,
समदृष्टि का दे दो वरदान ।
न कोई अपना न कोई पराया ,
इसका तुमने है ; बोध कराया ।
जला दो अलख – अखंड ज्योति ,
शिवोहम- शिवोहम की हो बोधि ।
मैं भी मोक्ष का मार्ग चाहता हूं , हे !
नटराज तेरा साथ चाहता हूं ।
मैं भी समाहित होना चाहता हूं तुम्हारे अंदर,
दे दो वरदान ये हे ! दयाशंकर ।
इस अंतहीन इच्छा का अब अंत यहीं कर दो, हे!
त्रिगुणातीत हे! अविनाशी,
शुद्ध सत्वगुण का वर दे दो ।
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