ख़ामोशी…
©बाबू भंडारी “हमनवा’
परिचय- बल्लारपुर, महाराष्ट्र.
ज़िन्दगी में कभी ग़म है तो कभी खुशी है।
कभी बड़बोली तो कभी ख़ामोशी है।।
बहारों के संग कभी फ़िजा मदहोशी है।
यही ज़िन्दगी जीने की भी दिलकशी है।।
दिल तो हमारा हमेशा रहता है बेचैन।
ख़ामोशी के बिना नहीं मिलता दिल को चैन।।
ख़ामोशी के भी ख़ुशी के लिए तरस जाते नैन।
जैसे ख़ामोशी के संग होते सीधे दिल से नैन।।
ख़ामोशी से होती है ज़िन्दगी की आगाज़।
यही है सही ज़िन्दगी जीने का अंदाज।।
दिल चाहता है किसकी उल्फत का परवाज़।
ऐसे भी बनता है हयात का मिजाज।।
ख़ामोशी जब तक रूह-ए-दिल से नहीं जुड़ जाता।
तब तक ज़िन्दगी जीने का मजा भी कहां आता।।
“बाबू” ख़ामोशी ही शख्स के ज़िन्दगी को संवार जाता।
उसके खुश्क-ए-जिस्त में नेमत-ए-जिस्त ले आता।।
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