मेरे बिना परलोक में | ऑनलाइन बुलेटिन
©सरस्वती राजेश साहू
परिचय– बिलासपुर, छत्तीसगढ़
मेरा साजन छोड़ गया,
कैसे? मुझको इस लोक में।
क्या? बता तू सुकून से है,
मेरे बिना परलोक में।।
कौन? है जो सहलाता होगा,
लाड़ से तेरे बालों को।
कहाँ? मिलेगा प्रियतम तुझको,
मीठी चुम्बन गालों को।।
मेरी प्रतीक्षा कर लेना तुम,
चाहे कटे दिन शोक में।
क्या? बता तू सुकून से है,
मेरे बिना परलोक में…।
कौन? वहाँ सीने से लगाकर,
पूछता होगा हाल सजन।
स्वर्ग में ऐसा क्या? सुख है जो,
बैठ गया होकर मगन।
स्वर्ग से प्यारा और निराला,
प्रेम बसा भू-लोक में।
क्या? बता तू सुकून से है,
मेरे बिना परलोक में…।
आस लिए मैं हरपल कहती,
हूँ ईश्वर से प्राथ में।
जन्म मिले तो फिर मिलें,
एक दूजे के साथ में।
चाहे बिछा दे काँटे पथ पर,
चलूँ कटार के नोंक में।
क्या? बता तू सुकून से है,
मेरे बिना परलोक में…।
क्या? खाया ! क्या? जल को पाया,
तृप्त है तेरी आत्मा।
क्या? मुझसे बेहतर रखता है,
ख्याल तेरा परमात्मा।।
चाहे कितना? सुख मिले पर,
प्रेम नहीं उस लोक में।
क्या? बता तू सुकून से है,
मेरे बिना परलोक…।
कैसा? सेज मिला जो तुझको,
नींद बहुत आती होगी।
प्रीति बिना क्या? उस शैय्या में,
मन की लहर भाती होगी।
मेरा जीवन कर के अंधेरा,
कैसे? चला आलोक में।
क्या? बता तू सुकून से है,
मेरे बिना परलोक में…।
मेरा हृदय! मेरी भावना कहती,
फिर तुम मुझको माँगोगे।
साथ मिलेंगे इस धरती पर,
फिर तुम उतना चाहोगे।।
किस्त न चाहूँ अब रे! साजन,
प्रेम मिले बस थोक में।
क्या? बता तू सुकून से है,
मेरे बिना परलोक में…।
मेरा साजन छोड़ गया,
कैसे? मुझको इस लोक में।
क्या? बता तू सुकून से है,
मेरे बिना परलोक में।।