तेरा अक्स चांद जैसा | Newsforum
©शीबा, अलीगढ़, उत्तरप्रदेश
परिचय : अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एमए, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कई पुस्तकें व कविताएं प्रकाशित, कहानी, कविता व लेखन में रुचि।
रात की अंधेरे में चांद की रौशनी में जब
‘चांद’ मुस्कुराता हुआ चांदनी के साथ खिलखिलाता है,
तब मुझे तुम याद आते हो।
लाखों तारों के आगोश में सोई हुई
चांदनी के साथ- साथ रकस करता है
जब मुझे तुम याद आते हो।
चांद जब अपनी नरम- नरम रौशनी की
मुस्कुराहट से चांदनी को ताकता है
तब मुझे तुम याद आते हो।
ठंडी- ठंडी रौशनी के हिसार में
चांदनी खो जाती है,
तब तुम मुझे याद आते हो।
चांद का इश्क तो ज़रा देखिए इंतिहा तक
सारी रात गुज़र जाती है इंतज़ार में
तब तुम मुझे याद आते हो।
इश़क अगर हो तो नामुकम्मल ही सही चांद की तरह,
चांद चांदनी के लिए रकस करता है उम्र भर
तब तुम मुझे याद आते हो।
चांद की रौशनी भी मंडराती रहती है
चांद के आस- पास जर्रा- जर्रा महक जाता है
रौशनी से तब तुम मुझे याद आते हो।
जिस तरह शब का पहला पहर आखिरी पहर तक
इंतज़ार करता है चांद भी चांदनी के साथ- साथ सफर तय करता है
तब रात की तनहाइयों में तुम मुझे याद आते हो।