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वो जिंदगी ही क्या… | Onlinebulletin

©द्रौपदी साहू (शिक्षिका), कोरबा, छत्तीसगढ़


 

 

जीवन में सभी के साथ सुख और दुख के पल आते हैं और इन सभी पलों को हम आनंद, धैर्य और संयम के साथ जीते हैं। हम हमेशा यह कोशिश करते हैं, कि हमारा हर दिन खुशनुमा गुज़रे और इसकी तैयारी हम पहले से ही करना शुरू कर देते हैं। इस तरह हम भविष्य के लिए योजना तैयार करते हैं।

 

हर किसी के मन में कोई न कोई इच्छा जरूर होती है और वह अपनी इच्छा पूरी करने की कोशिश भी करता है। यहीं ज़िन्दगी है, वरना वो ज़िंदगी ही क्या? जिसके मन में कोई इच्छा नहीं! वह तो केवल एक शव के समान है। क्योंकि हमारी इच्छा तभी खत्म होती है, जब हमारी मृत्यु होती है। जब तक हम जीवित हैं, तब तक हमारे मन में एक मंथन होते रहता है और उस मंथन से इच्छाएं पैदा होती रहतीं हैं।

 

कभी-कभी हमारा मन बिल्कुल शांत हो जाता है और हमारी इच्छाएं उदासीन हो जाते हैं। तब भी हमारे मन में इच्छा होती है, एकांत में बैठकर खुद से बातें करने की और हम ऐसा ही करते हैं। एकांत में बैठकर सोचते हैं, कि हम क्या करें? तब हमारे अंतस से विचार आता है कि हमें ऐसा कार्य करना चाहिए, जिससे सभी खुश रहें। फिर हमारी जिंदगी को एक दिशा मिलती है और हम उस ओर अग्रसर होते हैं और जीवन में आने वाले हर संघर्ष से हम लड़ते हैं और जीतते हैं।

 

वो ज़िंदगी ही क्या? जिसमें कोई संघर्ष न हो! इन संघर्षों से ही तो ज़िंदगी की कीमत है। खूबसूरती है और अहमियत है। ज़िंदगी अनमोल है और इसे हमें यूं ही व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। हमारा जन्म किसी न किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुआ है और हमें उन उद्देश्यों को पूरा करना चाहिए। अपने साथ-साथ समाज और देश के हित के बारे में भी सोचना चाहिए। अच्छे कार्य करने चाहिए, जिससे कि मृत्यु के बाद भी हमारा नाम अमर हो जाए।


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