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महामना रामस्वरूप वर्मा जी महान समाज सुधारक | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

राजेश कुमार बौद्ध

©राजेश कुमार बौद्ध

परिचय-   संपादक, प्रबुद्ध वैलफेयर सोसाइटी ऑफ उत्तर प्रदेश.


 

हामना रामस्वरूप वर्मा जी का जीवन एवं उनकी मेधा किसी जाति विशेष के उत्थान के लिए नहीं, अपितु सारे देश के विकास के लिए थी। उन्होंने दबी-पिछड़ी और दलित जातियों के पराभव का कारण ब्राह्मणवाद को माना था। उनका यही विलक्षण चिंतन उन्हें बुद्ध और आंबेडकर के नजदीक ले गया। डाॅ. लोहिया के तो वे राजनीतिक जीवन के सहयोगी थे ही, उन्होंने साम्यवाद से कुछ ग्रहण भी किया और कुछ त्याग भी दिया। महामना रामस्वरूप वर्मा जी इस मत के प्रबल पैरोकार थे कि ब्राह्मणवाद से मुक्ति के बिना पिछड़ा वर्ग अपना कल्याण नहीं कर सकता। इसी प्रयास में उन्होंने ब्राह्मणवाद के असली चेहरे को बेनकाब करने के लिए कई क्रांतिकारी ग्रंथों की रचना भी की।

 

लोककल्याण के लिए पूर्णतया समर्पित महामना रामस्वरूप वर्मा जी का कार्य आज इस बात की मांग करता है कि आज उनके परिचय को उत्तर प्रदेश की सीमाओं से बाहर निकालकर समूचे भारत में पहुंचाया जाए।

 

उनकी रचनाओं में:

 

 

अर्जक संघ की स्थापना 1 जून, 1968 को की थी. अर्जक संघ मानववादी संस्कृति का विकास करने का काम करता है. इसका मकसद मानव में समता का विकास करना, ऊंच-नीच के भेदभाव को दूर करना और सबकी उन्नति के लिए काम करना है. संघ 14 मानवतावादी त्योहार मनाता है. इनमें गणतंत्र दिवस, आंबेडकर जयंती, बुद्ध जयंती, स्वतंत्रता दिवस के अलावा बिरसा मुंडा और पेरियार रामास्वामी की पुण्यतिथियां भी शामिल हैं.

 

अर्जक संघ के अनुयायी सनातन विचारधारा के उलट जीवन में सिर्फ दो संस्कार ही मानते हैं- विवाह और मृत्यु संस्कार. शादी के लिए परंपरागत रस्में नहीं निभाई जातीं. लड़का-लड़की संघ की पहले से तय प्रतिज्ञा को दोहराते हैं और एक-दूसरे को वरमाला पहनाकर शादी के बंधन में बंध जाते हैं. मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार मुखाग्नि या दफना-कर पूरा किया जाता है, लेकिन बाकी धार्मिक कर्मकांड इसमें नहीं होते. इसके 5 या 7 दिन बाद सिर्फ एक शोकसभा होती है.

 

अर्जक संघ के मुताबिक, दरअसल हमारे हिंदू समाज में जन्म के आधार पर बहुत ही ज्यादा भेदभाव किया गया है. कोई पैदा होते ही ब्राह्मण, तो कोई वाल्मीकि होता है. ब्राह्मण समाज धर्मग्रंथों का सहारा लेकर सदियों से नीची जातियों का दमन करते आए हैं. उनके बारे में भाषाविद राजेंद्र प्रसाद सिंह कहते हैं, ‘रामस्वरूप वर्मा सिर्फ राजनेता नहीं थे, बल्कि एक उच्चकोटि के दार्शनिक, चिंतक और रचनाकार भी थे. उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की है.

 

क्रांति क्यों और कैसे, मानववाद बनाम ब्राह्मणवाद, मानववाद प्रश्नोत्तरी, ब्राह्मणवाद महिमा क्यों और कैसे, अछूतों की समस्या और समाधान, आंबेडकर साहित्य की जब्ती और बहाली, निरादर कैसे मिटे, शोषित समाज दल का सिद्धांत, अर्जक संघ का सिद्धांत, वैवाहिक कुरीतियां और आदर्श विवाह पद्धति, आत्मा पुनर्जन्म मिथ्या, मानव समता कैसे, मनुस्मृति राष्ट्र का कलंक आदि उनकी प्रमुख रचनाएं हैं.’वे कहते हैं, ‘वर्मा की अधिकांश रचनाएं ब्राह्मणवाद के खिलाफ हैं.

 

पुनर्जन्म, भाग्यवाद, जात-पात, ऊंच-नीच का भेदभाव और चमत्कार सभी ब्राह्मणवाद के पंचांग हैं जो जाने-अनजाने ईसाई, इस्लामी, बौद्ध आदि मानववादी संस्कृतियों में प्रकारांतर से स्थान पा गए हैं. वे मानववाद के प्रबल समर्थक थे. वे मानते थे कि मानववाद वह विचारधारा है जो मानव मात्र के लिए समता, सुख और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है. ’रामस्वरूप ने आंबेडकर की पुस्तक जब्ती के खिलाफ आंदोलन भी किया था. डॉक्टर भगवान स्वरूप कटियार द्वारा संपादित किताब ‘रामस्वरूप वर्मा: व्यक्तित्व और विचार’ में उपेंद्र पथिक लिखते हैं, ‘जब उत्तर प्रदेश सरकार ने डॉ. भीमराव आंबेडकर द्वारा लिखित पुस्तक जाति भेद का उच्छेद और अछूत कौन पर प्रतिबंध लगा दिया तो रामस्वरूप ने अर्जक संघ के बैनर तले सरकार के विरुद्ध आंदोलन किया, साथ ही अर्जक संघ के नेता ललई सिंह यादव के हवाले से इस प्रतिबंध के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में मुकदमा दर्ज करा दिया.

 

वर्मा जी खुद कानून के अच्छे जानकार थे. अंतत: मुकदमे में जीत हुई और उन्होंने सरकार को आंबेडकर के साहित्य को सभी राजकीय पुस्तकालयों में रखने की मंजूरी दिलाई. ’उन्हें याद करते हुए वरिष्ठ लेखक मुद्राराक्षस कहते थे, ‘यह इस देश का दुर्भाग्य है कि इतना मौलिक विचारक और नेता अधिक दिन जीवित नहीं रह सका, लेकिन इससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि समाज को इतने क्रांतिकारी विचार देने वाले वर्मा को उत्तर भारत में लगभग पूरी तरह से भुला दिया गया, रामस्वरूप वर्मा ने कभी भी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया.

 

उनकी दिलचस्पी राजनीति से अधिक सामाजिक परिवर्तन में थी. वह वैज्ञानिक चेतना पर जोर देते थे. उनका निधन 19 अगस्त, 1998 को लखनऊ में हुआ.एक ऐसे वक्त में जब अंधविश्वास और सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई में सिर्फ अतिवादियों से ही नहीं पूंजीवादी व्यवस्था से भी लड़ना है तो राम स्वरूप वर्मा के वैज्ञानिक, तर्कयुक्त और पाखंड से दूर विचार उपयोगी साबित हो सकते हैं।

 

संपर्क-

डॉ भीमराव अम्बेडकर पुस्तकालय एण्ड पब्लिकेशन- गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।

Email- prabuddhvimarshgkp@gmail.com

 

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