मां | Newsforum

©राहुल सरोज, जौनपुर, उत्तर प्रदेश
मन आहिस्ता आहिस्ता,
है उन सपनों में रिसता,
जिसमें है मां का आंचल,
जिसमें है मां की ममता,
मन आहिस्ता आहिस्ता,
जीवन संगीत है लिखता,
जिसमें है मां की लोरी,
जिसे सुन बचपन है खिलता।
मन आहिस्ता आहिस्ता,
है कोई तस्वीर बनाता,
जिसमें है मां का चेहरा,
हंसता खिलता मुस्काता,
मन आहिस्ता आहिस्ता,
उस मां के पास है जाता,
जो रहती सघन दु:खों में,
विरले मुझ पर दु:ख आता,
मन आहिस्ता आहिस्ता,
उस मां के गीत है गाता,
मन आहिस्ता आहिस्ता,
उस मां को शीश झुकाता।