ना जाने कब रुक जाएगी…
©गायकवाड विलास
तेरे बिन लगता है सब यहां सुना सुना,
कैसे कटेंगे अब पहाड़ से ये दिन।
यादें तुम्हारी रूलाती है वक्त बेवक्त हमें,
अब रूककर भी रूकते नहीं है ये बहते हुए नयन।
तुम थे,जब जीवन में हमारे साथ-साथ,
तब आंगन में कलियां भी मुस्कुराती थी।
अब दीवारें भी तन्हाई में डुबी है तुम्हारी यादों में,
वो भी कल संग संग हमारे खिल उठती थी।
पतझड़ हुई जिंदगी बहारें भी अब आती नहीं,
किसे बताऊं दास्तां,कोई भी अब मेरा साथी नहीं।
अकेले जिएं नहीं जाती ये जिंदगी तुम्हारे बिना,
तुम्हारे सिवा इस दुनियां में कोई नहीं है मेरा अपना।
किस किस निगाहों से अब ख़ुदको बचाऊं में,
कांटों सी चुभती निगाहें कैसे सह पाऊं में।
आओ कहीं से तुम,हार गई हूं में इस जिंदगी से,
बस तेरे ही इंतजार में,रूकी हुई है ये मेरी टूटती सांसें।
तुम्हारे बिना कैसे कटेंगे अब पहाड़ से ये दिन,
बिन मौसम बरसता है मेरे आंगन में ये अश्कों का सावन।
शमा बनकर जल रही हूं में सिर्फ तुम्हारे लिए,
ना जाने कब रूक जायेगी मेरे इस दिल की धड़कन – – –
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