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धम्मपदं : कौन पृथ्वी, देवता और यमलोक को जीतेगा? कौन दुख मुक्ति के इस धम्मपथ को चुनेगा? | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

को इमं पठवि विचेस्सति, यमलोकञ्च इमं सदेवकं।

को धम्मपदं सुदेसितं, कुसलो पुप्फमिव पचेस्सति।।

 

कौ है जो इस (स्वभाव, आत्मभाव रूपी) पृथ्वी और देवताओं सहित यमलोक पर विजय प्राप्त करेगा? कौन इस यमलोक को बींधकर इनका साक्षात्कार कर लेगा?

 

इसी तरह कौन कुशल व्यक्ति अच्छी तरह से उपदेश किए हुए धम्म के पदों का पुष्प की तरह चुन कर संग्रह करेगा? कौन अच्छी तरह उपदेश किए हुए धम्म के वचनों का फूलों की तरह इकट्ठा करेगा? कौन कुशल व्यक्ति फूल की तरह, सुंदर सरल ढंग से समझाए गए सद्-धम्म के मार्ग को चुनेगा? आखिर कौन?

 

जीवन पथ पर चारों ओर लुभावने, आकर्षित करने वाले, सिर्फ ऊपरी रूप से सुंदर दिखने वाले और इसके विपरीत सार्थक, सच्चे व्यक्ति, विचार और वस्तुएं भी मौजूद है, धम्म और अधम्म दोनों यहां हैं लेकिन कौन सार-असार का कर्म कर सार को चुनेगा? कौन भले-बुरे, कुशल-अकुशल, व्यर्थ-सार्थक का फर्क कर, सही मार्ग चुनेगा?

 

क्योंकि ऐसे माहौल में हर कोई तो जानते हुए भी सही मार्ग पर नहीं चलता है। आखिर कौन है जिसके यह सत्य समझ में आ जाए और धम्मपथ पर चलेगा?

 

पृथ्वी यानी मनुष्य के चित्त का धरातल, अंदर की पृथ्वी। यमलोक को जीतने की बात तो अलंकारिक है। जीतने को तो पृथ्वी, देवलोक, यमलोक (व्यक्ति के दुखों का संसार) सभी पर जीत हासिल की जा सकती है, साधना के प्रयास से मृत्यु पर भी विजय पाई जा सकती है लेकिन उसके लिए जीने का कौशल, कला सीखनी जरूरी है, तो कौन यह कला सीखकर धम्मपथ पर चलने का संकल्प लेगा?

धम्मपदं : धम्मपथ का राही ही दुखों के संसार को जीतेगा…

 

 

सेखो पठविं विचेस्सति यमलोकञ्च इमं सदेवकं।

सेखो धम्मपदं सुदेसितं कुसलो पुप्फमिव पचेस्सति।।

 

शैश्य (शिष्य), सीखने वाला, निर्वाण की खोज में धम्मपथ पर चलने वाला व्यक्ति ही इस पृथ्वी और देवताओं सहित यमलोक को जीतेगा। एक कुशल शैक्ष्य ही अच्छी तरह उपदेश दिए हुए, सिखाए हुए धम्मपदों को चुनेगा, जैसे कोई माला बनाने के लिए फूलों को चुनता है।

 

पृथ्वी, देवता और यमलोक तीन उपमाएं हैं। पृथ्वी अर्थात बाहरी संसार, मनुष्य से मुक्ति और अपने कल्याण के लिए इन सभी पर विजय पाना है। यह कौन करेगा, ऐसा कौन योग्य व्यक्ति जीत सकेगा? तथागत कहते हैं- शिष्य जीतेगा, सीखने वाला जीतेगा। निर्वाण के मार्ग पर जो दृढ़ संकल्प के साथ चल पड़ा है, जो उससे विचलित नहीं हो सकता, वह सीखने की चाह वाला सदैव जीत हासिल करेगा।

 

शैक्ष (शिष्य), सेख का अर्थ है जो सीखने को तैयार है। तथागत बुद्ध उन्हें ‘श्रावक’ कहते हैं। वह बड़ी विनम्रता से यह स्वीकार करता है कि वह अब तक संसार का सत्य नहीं जान पाया, दुख मुक्ति का मार्ग जान नहीं पाया, जीवन जीने की कला सीख नहीं पाया इसलिए वह इसके लिए पूरी तरह से तैयार है।

 

एक विद्यार्थी जानकारियों को जानने का जिज्ञासु होता है जबकि शिष्य सत्य को जानने और पाने का पथिक होता है, सत्यार्थी होता है। हालाकि वर्तमान में गुरू-शिष्य के मकडज़ाल में फंसा शिष्य वैसा नहीं है यह विकृत रूप है। अब गुरू जैसा है वैसे ही उनके चेले।

 

तथागत कहते हैं-निर्वाण के धम्म पथ पर चल पड़ा कुशल शिष्य, जिसने जीवने जीने की कला सीखने की ठान ली, वही कल्याणकारी धम्म की शिक्षाओं को जानेगा और ग्रहण करेगा। इसलिए दुख मुक्ति के मार्ग को जानो। राग-द्वेष और मोह को त्यागो, चित्त को जानो और वश में कर सही मार्ग पर लगाओ। संसार नश्वर है, अनित्य है, मृत्यु सत्य है।

 

धम्म की ऐसी शिक्षाओं को समझने वाला व्यक्ति पृथ्वी सहित यमलोक को भी जीत लेता है। वह धम्म के पदों को, धम्म की शिक्षा के सूत्रों को चुनकर इस प्रकार से इकट्ठा कर लेता है जैसे एक कुशल माली फूलों को इकट्ठा कर उनका सुंदर द्वार बनाता है।

 

 सबका मंगल हो…..सभी प्राणी सुखी हो

 

डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.

 

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