देखो हर अल्फ़ाज़ मेरे…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र
शहर की हवाओं ने गांव को भी बक्शां नहीं,
गांव में भी अब लोग बंद खिड़कियों से देखने लगे है।
धरती वही आसमां भी वही है सदियों पुराना,
सिर्फ आज यहां पे लोगों की नीतियां बदली हुई है।
कारवां कल भी था,कारवां आज भी है यहां राहों पर,
मगर आज यहां देखो ये लोग कैसे एक-दुसरे को अनदेखा करते है।
वही बीज बोकर चले गए वो कल के लोग यहां पर,
फिर भी आज यहां क्युं इतना बदला बदला सा लगता है।
देशभक्ति का दौर उन्हीं शहीदों के साथ दफ़न हुआ यहां पे,
ज़मीर बेचनेवाले वो लोग अपनी ही मातृभूमि का सौदा करने पर तुले है।
प्रजासत्ताक दिन और गणतंत्र दिन जैसे कोई आम त्योहार बना है,
अब इस राष्ट्रीय त्योहार में वो देशभक्ति की खुशबू कहां है।
बदले जमाने की दास्तां लिखते है ये मेरे अल्फ़ाज़,
देखो हर अल्फ़ाज़ मेरे अश्क बहाते हुए नज़र आते है – – –
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