पापा की बेटी | ऑनलाइन बुलेटिन
©जलेश्वरी गेंदले
परिचय- शिक्षिका, पथरिया, मुंगेली, छत्तीसगढ़
मस्तमौला मैं
गुनगुना रहा था।
जीवन की खुशियां पा
इतरा रहा था।
जब हुआ एहसास
जिम्मेदारी का
तो दौड़ भाग कर
दो वक्त की रोटी जुटाने
दूर जा रहा था।
थके हुए मन को
एक तेरी ही मुस्कान थी
जिसे देख
जीवन के
परस्थतियों से
लड़ने को हिम्मत मै
जुटा रहा था।
सुन के तेरी
तोतली भाषा को
जब पापा जी कह
तुम मुझे
बुला रही थी
हर पल की
याद कैसे भुलाऊं
लाडो (आरूही)
जब पापा कह
तुम मुझे बुला
मेरी जिम्मेदारी के एहसास
करा रही थी।
आजा बेटी
एक बार
पुकार
तोतली भाषा में
पापा सुनने को हृदय
है बेकरार
एक बार पुकार
बेटी लाडो
क्यों चली गई तुम दूर
कहोगी पापा
कैसे पाऊंगा अब मैं सुन
क्या हुई थी मुझसे भूल
जो तुम गई मुझसे रूठ।
भावपूर्ण आदरांजली