पागल बन भटकता है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन
©हिमांशु पाठक, पहाड़
दीवाना, वो, जो सड़कों पर,
पागल बन, भटकता है।
सुना है! कि दीवारों पर,
किसी का नाम लिखता है।
ना ढंग से खाता-पीता है,
ना ही रातों में सोता है।
सुना कि वो पागल,
किसी के प्यार में रोता है।
दीवाना वो जो सड़कों पर,
पिंगल बन भटकता है।
उसे अब कौन समझाए?
जमाने के नए दस्तूर।
कि मौसम की तरह अब,
प्यार भी हर पल बदलता है।।
कहां अब प्यार में,
जज़्बात के लिए कोई जगह!
नफा-नुकसान के आधार पर,
अब प्यार होता है।।
भला जज्बात की बातें,
यहाँ पर कौन करता है।
कि मौसम की तरह प्यार भी
अब हर पल बदलता है।।
राम-सीता की बातें अब
भला, यहाँ कौन करता है।
कृष्ण और राधा के किस्से,
किताबों भर का हिस्सा है।
कि मौसम की तरह अब,
प्यार भी हर पल बदलता है ।।
आज तो प्यार की हालत भी
कुछ, कपड़ों के जैसी है।
कि दिनभर में ये कितने बार
ही बनता – बिगड़ता हैं।
कि मौसम की तरह अब ,
प्यार भी हर पल बदलता है
कि ये जो सोशल मिडिया पर,
सेटिंग, चैटिंग, डेटिंग होती है।
पुराने संबंधों की इसमें,
नित आहुति होती है।
कि सब कुछ छोड़ दीवाना,
नित-नूतन अपनाता है।
फिर पैंतीस टुकड़ों में,
प्यार का हश्र मिलता है।।
कि मौसम की तरह अब
प्यार भी हर पल बदलता है ।।
दीवाना, वो, जो, बन पागल,
सड़कों पर विचरता है।
सुना है कि दीवारों पर,
किसी का नाम लिखता है ।।