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रंजोगमों के लम्हों से…

©गायकवाड विलास

परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र


 

रंजोगमों के लम्हों से यहां कौन डरता है साहब,

जिंदगी कैसे कहें उसे,जहां तकलीफें है बेहिसाब।

 

ना बदला वो सूरज ना बदली ये फिजाएं,

फिर कौन-सी ख़ुशी में,हम नया साल ये मनाएं।

 

बस इतनी-सी दुवाएं मांगता हूं मैं इस नए साल में,

बस हर दिन की रोटी हो यहां सभी के मुकद्दर में।

 

वो क्या मनायेंगे नया साल,जिनके तकदीर में हर दिन अंधेरा है,

उन्हीं के आंगन में आते-आते,सूरज भी यहां डुबता सितारा है।

 

हर सुबह का इंतजार करते-करते जिंदगी भी थक गई,

फिर भी निकला नहीं वो सूरज,जो हर जिंदगी को रोशन करें।

 

नए साल का ये सूरज,आज भी वैसा ही निकला है,

आखिर आज भी हमारे आंगन में सुखों का वही फासला है।

 

रंजोगमों के लम्हों से यहां कौन डरता है साहब,

जिंदगी कैसे कहें उसे,जहां अश्कों की बारिश है बेहिसाब।

 

Gaikwad Vilas, Latur, Maharashtra
गायकवाड विलास

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