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आत्म मंथन…

©पद्म मुख पंडा 

परिचय- रायगढ़, छत्तीसगढ़


 

जीवन भर झुूठ बोलने वाले भी,

अन्तिम क्षणों में, सत्य वचन कहते हैं,

स्वार्थपरायणता में जीवन यापन कर,

बुढ़ापे में, आध्यात्मिक बने रहते हैं!

सोचता हूं, ऐसा किसलिए है?

मरणोपरांत क्या होगा,

यह भय है, इसलिए है?

जब पता है कि, जीवन नश्वर है, तो,

आज किस बात पर डर है?

सत्य, प्रेम, सद्भाव सहयोग और सम्मान,

सनातन है, सदा अमर है!

जो बोओगे , वही तो काटोगे?

भर लिया है पापों का घड़ा,

उसे, किस तरह से पाटोगे?

पश्चाताप करते , प्रायश्चित करते,

गुजर रहीं हैं पीढ़ियां,

पापाचार करते, थक कर,

करते दान धर्म, तीर्थ यात्रा,

चढ़ते हैं मन्दिरों की सीढ़ियां!

माता पिता जी और सभी गुरुजनों ने,

सदैव सन्मार्ग दिखाया,

किसी ने बुरा नहीं चाहा,

अपने हृदय में ठौर दिया, बसाया!

पर, क्षणिक सुख प्राप्त करने के लिए,

न जाने, कितने कुकर्म किए!

धन दौलत और शोहरत की खातिर,

अपनों को सताया, कष्ट दिए!

अब, जब संसार से, विदा होना है,

तो फिर ये व्यर्थ ही रोना है,

सत्कर्म करिए, कुकर्मों से डरिए,

यही सच है, मानवता के लिए,

संसार को सुधारना चाहते हैं तो,

पहले खुद ही सुधरिए!

***

 

 

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