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स्वार्थी मानव बेहाल प्रकृति | newsforum

©मोहित प्रजापति, नवागढ़ मारो


 

देखो पेड़ों की छांव में बैठा स्वार्थी मानव।

देखो कैसे काट रहा पेड़ों को बनके दानव।

 

पेड़ों की हर एक पत्ती की हरियाली,

बाग बगीचों से है जीवन में खुशियाली।

पेड़ न होते तो न होता ये मानव जीवन,

इन्हीं से इंसानों की होली और दिवाली।

 

देखो पेड़ों की छांव में बैठा स्वार्थी मानव।

देखो कैसे काट रहा पेड़ों को बनके दानव।

 

इन्हीं से पानी इन्हीं से हवा और भोजन,

फिर भी देखो फैला रहा इंसान प्रदूषण।

उसी को काट उसी की छांव में बैठकर,

किस पेड़ को काटू सोच रहा दुष्ट मानव।

 

देखो पेडों की छांव में बैठा स्वार्थी मानव।

देखो कैसे काट रहा पेड़ों को बनके दानव।

 

कटे तन के दर्द को क्या समझेगा इंसान।

चीख़ चीख़ दे रही है प्रकृति कितने संदेश।

कोरोना से प्रकृति कर रही सबको सचेत।

अभी मौका है बचा लो इंसानों अपना देश।

 

देखो पेड़ों की छांव में बैठा स्वार्थी मानव।

देखो कैसे काट रहा पेड़ों को बनके दानव।


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