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मोर दुख हराईया राम | newsforum

©गणेन्द्र लाल भारिया, शिक्षक, कोरबा, छत्तीसगढ़

परिचय: प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (हिन्दी), केन्द्रीय विद्यालय, अंबिकापुर


 

 

जब जब बिपदा परिस, तब तब गोहराए राम ल।

इही जंगल झारी ले आइस मोर दुख हरइय्या राम ह।

 

 

नई देखीस कांटा खुटरी अऊ अपन सुख ल।

गोहरावत चले आइन, मोर हरे दुख ल।

 

जब जब बिपदा परिस, तब तब गोहराए राम ल।

इही जंगल झारी ले आइस मोर दुख हरइय्या राम ह।

 

 

उबड खाबड पैडगरी ल, पार करीन राम ह।

अऊ रटे बर दे गिन मोला, अपन परम नाम ल।

 

 

जब जब बिपदा परिस, तब तब गोहराए राम ल।

इही जंगल झारी ले आइस मोर दुख हरइय्या राम ह।

 

 

जिए के सुघ्घर रसता सिखाईन हमन ल।

राम नाम के जप करके, करलिन अपन जतन ल।

 

 

जब जब बिपदा परिस, तब तब गोहराए राम ल।

इही जंगल झारी ले आइस मोर दुख हरइय्या राम ह।

 

सुघ्घर जिए के लीला रचिन मोर राम ह,

करम करके सरग जाए के रसता बताईन राम ह।

 

जब जब बिपदा परिस, तब तब गोहराए राम ल।

इही जंगल झारी ले आइस मोर दुख हरइय्या राम ह।

 

दया धरम के बात सिखाईन संसार ल।

अऊ खतम करिन ऊंच नीच के असार ल।

 

जब जब बिपदा परिस, तब तब गोहराए राम ल।

इही जंगल झारी ले आइस मोर दुख हरइय्या राम ह।


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