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नंदिनी | ऑनलाइन बुलेटिन

©संतोष यादव

परिचय- मुंगेली, छत्तीसगढ़.


 

 

 

मैं नंदिनी, जगत जननी,

 

मैं सखी, पत्नी, पुत्रवधू हूं ।

 

 

मैं गौरी, लक्ष्मी , काली , दुर्गा,

 

मैं सरस्वती , अन्नपूर्णा हूं ।

 

 

मैं प्रकृति , मैं भूमि ,

 

मैं हूं स्वयं आदिशक्ति।

 

जिस पर रहती मेरी कृपा ,

 

वही मैं जन्मा करती हूं।

 

 

जब मैं करती हूं रौद्र रूदन ,

 

विरान हो जाता है सदन।

 

 

मैं निर्मल कोमल हूं सुमन,

 

भद्रकाली बन करती हूं मर्दन।

 

 

जब मंद – मंद मुस्काती हूं,

 

चिड़िया सा चहचाहती हूं।

 

 

जब हृदय से खुश हो जाती हूं ,

 

हरियाली घर में लाती हूं।

 

 

सम्मान जो मेरी करता है,

 

जीवन सुखों से भरता है।

 

 

जब नाश मनुज पर छा जाता है,

 

अपमान घूंट का पिलाता है।

 

 

जो अभिमानी करता है निरादर,

 

कर देती हूं उसे मैं अनादर।

 

 

फिर कभी न उस घर जाती हूं ,

 

चाहे दुनिया हो जाए इधर से उधर।

 

 

मैं नंदिनी बनकर जनक का ,

 

मस्तक गर्व से ऊंचा करती हूं ।

 

 

मैं पुत्रवधू बनकर ,

 

गृहलक्ष्मी रूप में आती हूं ।

 

 

मैं भार्या बनकर आर्य के दुर्भाग्य को,

 

परम सौभाग्य में बदल देती हूं।

 

 

मैं जननी बनकर शिशु का,

 

पालक , तारक  बन जाती हूं।

 

 

मैं अन्नपूर्णा बनकर सबको ,

 

भोजन प्रसाद खिलाती हूं।

 

 

मैं स्वयं सरस्वती का रूप धारण कर,

 

बच्चों का प्रथम गुरु बन जाती हूं।

 

 

ऐसा कोई काम नहीं ,

 

जिस काम को मैं कर सकती नहीं।

 

 

मैं ही राष्ट्रपति , मैं ही प्रधानमंत्री,

 

मैं ही राज्यपाल , मुख्यमंत्री बन जाती  हूं।

 

 

मैं आईएएस, आईपीएस, आईएफएस,

 

अखिलभारतीय सेवाओं में सम्मान पाती हूं।

 

 

मैं ही तीनों सेनाओं में,

 

चण्डी का रूप धरा करती हूं।

 

 

ऐसा कोई घर , परिवार नहीं,

 

जहां पर मैं बसती नहीं।

 

 

पुरूषों से हर एक क्षमता

 

मुझमें है , अधिक आठ गुना।

 

 

फिर भी अभिमान नहीं मुझमें ,

 

मेरे हृदय आज भी है।

 

 

पुरुषों की छवि का सम्मान लिए ,

 

मैं भी जनक का नंदिनी हूं ।

 

 

यह पवित्र भावना l

 

 

मन भरी पड़ी हैं,

 

आज भी मेरी अंतरात्मा में।

 

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