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शिक्षक | Newsforum

©डॉ. कान्ति लाल यादव, सहायक आचार्य, उदयपुर, राजस्थान


 

 

इंसान का जन्म तो सहज है, परंतु एक अच्छे इंसान के निर्माण का कार्य एक उत्तम शिक्षक के द्वारा ही होता है। एक आदर्श शिक्षक ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करता है। दुनिया में जितने भी महान् व्यक्ति हुए उन्हें महानता दिलाने का महान् कार्य भी उच्च आदर्श शिक्षकों के द्वारा ही हुआ है। एक शिक्षक की असली संपत्ति उसके आदर्श एवं बुद्धिमान शिष्य ही होते हैं। एक उत्कृष्ट शिक्षक समय का सदुपयोग, ज्ञान, ध्यान, धैर्य, शौर्य, वीरता, पराक्रम, सकारात्मक सोच – समझ, उत्तम चरित्र, अनुशासन, व्यक्तित्व का निर्माण जैसे गुणों के साथ इंसानियत का पाठ पढ़ाता है।

 

इंसान को जीवन जीने का सलीका यदि कोई सिखाता है तो वह शिक्षक ही होता है। इंसान के जीवन में प्रथम शिक्षिका मां ही होती है जिसे वह अपनी मातृभाषा से शिशु का दुनिया से परिचय करवाती है। एक शिक्षक ही होता है जो बालक का चरित्र का निर्माण करता है जिससे हमारा दूसरा जन्म होता है। अक्षर ज्ञान से जीवन ज्ञान देने का काम एक शिक्षक के द्वारा होना ही हमारा दूसरा जन्म के समान है।

 

गुरु-शिष्य की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है जो पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। गुरु शब्द दो वर्ण से मिलकर बना है। गु और रु।  गु अर्थात अंधकार (अज्ञान), रु अर्थात प्रकाश (ज्ञान) जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए। अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाए वही गुरु होता है। जिसे आज हम शिक्षक कहते हैं।

 

शिक्षक तीन वर्ण से मिलकर बना है-शि-शिष्टाचारी, क्ष- क्षमाशील एवं क- कर्तव्यनिष्ठ। जो विद्यार्थी को जीवन में शिखर तक पहुंचाए। बालक की गलतियों को क्षमा कर दें। अपने ज्ञान से जीवन में नव संचार कर दे तथा बालक की सारी कमजोरियों को को मिटा दें और जीवन में आगे बढ़ा दे वही तो होता है शिक्षक।

 

भारत के प्रथम उप राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने जीवन के 40 वर्षों तक एक शिक्षक के रूप में सेवा दी थी। इसके बाद उन्होंने देश के प्रथम उपराष्ट्रपति पद को सुशोभित किया था। वे एक महान् शिक्षाविद, दार्शनिक तथा कुशल वक्ता थे। उनका जन्म 5 सितंबर 1888 में तमिलनाडु के तिरुतानी में हुआ था। उन्होंने कहा था कि मेरा जन्मदिन एक शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो मुझे गर्व होगा। उनके जन्मदिवस को ही “शिक्षक दिवस” के रूप में मनाने की शुरुआत 5 सितंबर को 1962 से हुई है। दुनिया में लगभग 100 देशों में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

 

दुनिया के 21 देशों में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है। 11 देशों में 28 फरवरी को शिक्षक दिवस (टीचर्स डे) मनाया जाता है। थाईलैंड में 16 जनवरी को और तुर्की भी 24 नवंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को मनाया जाता है।

 

प्रत्येक देश का भविष्य वहां के शिक्षक के हाथों में होता है। वह चाहे वैसे अपने शिष्यों को सही-गलत व्यवहार में, आकर में ढाल सकता है। सच्चे अर्थों में एक शिक्षक ही राष्ट्र का धरातल होता है। जापान जैसे राष्ट्र में वहां की युवती यदि शादी करना चाहती है तो वह शिक्षक का पेशा करने वाले युवक को सबसे ज्यादा प्राथमिकता देती है क्योंकि वहां का राष्ट्र शिक्षकों को इतना अधिक महत्व देता है। शिक्षक ही राष्ट्र के निर्माण में सुंदर फूल खिला सकता है। विकास की गंगा बहा सकता है। ज्ञान की खुशबू फैला सकता है।

 

कोरोना जैसे विश्व महामारी में भी शिक्षक ने अपने घर बैठे छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा देकर भी अपना दायित्व पूरा किया। चाहे शिष्य अपना कर्तव्य भूल सकता है किंतु शिक्षक अपना दायित्व नहीं भूल सकता।

 

आज विडंबना इस बात की है कि शिक्षकों में भी भेद किया जाने लगा है सरकारी शिक्षक और निजी संस्थाओं में सेवा देने वाले शिक्षक दोनों ही प्रकार के शिक्षक इस राष्ट्र की सेवा करते हैं। बावजूद उनमें समाज भेद करता है तथा निजी शिक्षकों के प्रति हैय दृष्टि से देखता है। जब पिता अपने होनहार बालक की प्रारंभिक शिक्षा दिलवानी होती है तब वह प्राइवेट स्कूल की बात करता है और गर्व करता है कि मेरा बेटा प्राइवेट स्कूल, कॉलेज में पढ़ रहा है किंतु उसी विद्यालय एवं महाविद्यालय के शिक्षकों से बात करता है तब वह हैय दृष्टि का नजरिया रखता है और अपने बच्चों से निजी विद्यालय और महाविद्यालय में पढ़ाकर, अपेक्षा सदा सरकारी नौकरी की ही रखता है। जब बच्चे की सरकारी नौकरी नहीं लग पाती है तब दबाव दिया जाता है जिसकी वजह से युवा आत्महत्या की सोचता है या नशा करने की इन दोनों स्थितियों में परिणाम बुरा ही निकलता है।

 

सरकारों का रवैया भी शिक्षकों के वेतन को लेकर आज तक पक्षपातपूर्ण ही रहा है। एक नरेगा में काम करने वाले मजदूर का वेतन तो तय कर रखा है किंतु एक शिक्षक की सेवा के आधार पर अर्थात् निजी विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय के शिक्षक का वेतन कितना होगा? नौकरी में स्थायित्व है या नहीं? इसकी मजबूत नीति सरकार ने आज तक तय नहीं की। जिसकी वजह से समाज तंत्र में दोष देखा गया है।

 

भारत को विश्व गुरु का सपना दिखाना बेबुनियाद और कल्पना मात्र ही है। जब तक इस देश के शिक्षक को सही मायने में उचित सम्मान और पक्षपात रहित व्यवहार ना मिलेगा तब तक संभव नहीं है। भारत के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति पद तक पहुंचाने वाला भी एक शिक्षक ही है। सभी क्षेत्र में विकास की सीढ़ी जब शिक्षक है तो फिर निजी शिक्षक के साथ उचित व्यवहार क्यों नहीं? क्या निजी शिक्षक की सेवा, योग्यता एवं समय का महत्व नहीं है? क्या निजी शिक्षक इस देश रूपी महल की नींव का पत्थर नहीं है? क्या राष्ट्र निर्माण में उसका योगदान नहीं है?

 

महात्मा गांधी ने भी कहा था कि हमारा शिक्षा तंत्र दोषपूर्ण है, क्योंकि वह व्यवसाय अर्थात रोजगार परक शिक्षा का अभाव है। आज शिक्षा सिर्फ इंफॉर्मेशन वाली शिक्षा है ना कि नॉलेज वाली। प्रतियोगी परीक्षाओं में ऐसा हो ही हो रहा है।

 

निजी शिक्षकों के साथ यदि सरकारों का रवैया इस प्रकार उदासीन ही रहा तो आने वाले 20 वर्षों में भारत को विदेशों से ब्रेन मंगवाना पड़ेगा। यहां के ब्रेन में ऐसी क्वालिटी कैसे विकसित होगी? जब शिक्षा व्यवस्था इतनी लचर होगी तो ? सिर्फ बड़ी-बड़ी योजना बनाकर विकास बताने के बजाय देश में उत्तम गुणोत्तर की शिक्षा हेतु उत्तम शिक्षकों की सुविधाओं से संभव हो सकेगा। शिक्षक को सही सम्मान ना देने पर कोई भी राष्ट्र सही मायने में अपनी तरक्की नहीं कर सकता है।


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