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भगवान Buddha के विरोधी ब्राह्मण ही उनके धम्म के ध्वजधर बने, आखिर यह अजूबा कैसे संभव हो पाया ?.. आइए जानते हैं…

Buddha
डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

Buddha : Brahmin is the one who knows the art of seeing Brahma, who is Brahmamay. Be a Brahmin not by birth, caste and clan but by knowledge, experience and understanding. How could they have missed attaining Buddha. All such knowledgeable, meditative, thinkers came to Buddha and became dear to Buddha. On finding the true guide of his salvation, he did not hesitate to take refuge in him. It didn’t think at all that Buddha is not a Brahmin and how can a Brahmin bow down before a non-Brahmin?

 

ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन : भगवान बुद्ध के जो ब्राह्मण विरोधी थे, वे ही उनके धम्म के ध्वजधर बने, धम्म वाहक व धम्म चक्र को गति देने वाले बने. आखिर यह अजूबा कैसे संभव हो पाया ?..

 

दरअसल बुद्ध के समय में जो सच्चे व ज्ञानी ब्राह्मण थे, वे तो बुद्ध के साथ हो लिए. उनको बुद्ध में शास्ता, मार्ग दाता, ब्रह्म के दर्शन हो गए.(Buddha)

 

ब्राह्मण वही जिसको ब्रह्म को देखने की कला आती हो, जो ब्रह्ममय हो. जन्म, जाति और कुल से नहीं बल्कि ज्ञान, अनुभव व बोध से ब्राह्मण हो. वे भला बुद्ध को पाने से कैसे चूकते. ऐसे सभी ज्ञानी, ध्यानी, विचारक बुद्ध के पास आए और बुद्ध के प्रिय हो गए. उन्होंने अपनी मुक्ति के सच्चे मार्गदाता मिलने पर उनकी शरण जाने में जरा सा भी संकोच नहीं किया. यह बिल्कुल नहीं सोचा कि बुद्ध ब्राह्मण नहीं है और गैर ब्राह्मण के आगे ब्राह्मण कैसे झुके?

 

ब्राह्मण तो वही है जो सीखने व झुकने की कला जानता है. चाहे आगे क्षत्रिय हो या शूद्र. जहां बुद्ध पैदा होते हैं, भगवत्ता प्रगट होती हैं, ब्रह्म का फूल खिलता है, जहां शुद्ध धम्म की सुगंध फैली होती हैं वहां उस काल में हो या आज ब्राह्मण जरूर झुकेगा.(Buddha)

 

जो ज्ञानी विद्वान ब्राह्मण थे, वे बुद्ध के पास आकर झुक गए और सिर्फ झुके ही नहीं बल्कि बुद्ध के धम्म के ध्वजधर व धम्म वाहक बने, धम्म चक्र को गति दी. और जो जाति वर्ण की अकड़ में रहे वे कहीं के नहीं रहे.

 

भगवान बुद्ध के सभी बड़े शिष्य व भिक्षु भिक्षुणी संघ में ज्यादातर ब्राह्मण ही थे. बुद्ध की दो भुजा कहे जाने वाले दो धम्म सेनापति सारिपुत्त व महामोगल्यान और तीसरे नंबर पर महाकश्यप ब्राह्मण कुल के ही थे. वे उच्च कहे जाने वाले कुल, अमीर परिवारों या बड़े आश्रमों के मुखिया थे लेकिन वे सब छोड़कर बुद्ध, धम्म व संघ की शरण में आए.(Buddha)

 

और जो ब्राह्मण यह सोचते थे कि वे ब्राह्मण घर में पैदा हुए हैं, जन्म से ब्राह्मण हैं, वेद कंठस्थ हैं, शास्त्रों का ज्ञान है. महंत, मठाधीश या पुरोहित हैं उन्होंने बुद्ध को स्वीकार नहीं किया. बुद्ध उनसे हजम नहीं हुए. क्योंकि जब भी बुद्ध जैसा व्यक्ति पैदा होता है वह मानव कल्याण के लिए धर्म के नाम पर काल्पनिक, कर्मकांड, अंधविश्वास, अमानवीय शास्त्रों व शोषण के खिलाफ खड़ा हो जाता है. मानव हित से परे अवैज्ञानिक परम्पराओं पर सीधी चोट करता है. शोषण की जड़ आत्मा परमात्मा के अस्तित्व को नकारता है.

 

तो ब्राह्मण पक्ष में भी थे और विरोध में भी. ऐसा हमेशा से होता आया है. क्योंकि तर्क, विवेक, विज्ञान व मानवता में विश्वास रखने वाले व्यक्ति हमेशा सत्य के साथ खड़े नजर आते है. फिर वे मान, अपमान, परंपरा व कुल की झूठी मान्यताओं की चिंता नहीं करते हैं. ऐसा हर काल में देखा जाता है. (Buddha)

 

आज का समझदार, विवेकवान ब्राह्मण शांति व बुद्धिमता से बुद्ध के धम्म की धारा पर चल पड़ा है. उन्हें समझ आ गया है कि सुख शांति का मार्ग कौनसा है, भविष्य का धम्म कौनसा है. लेकिन मंदिर व्यवस्था के पोषक, कर्मकांडी, रूढ़िवादी ब्राह्मण आए दिन नए-नए शगूफे छोड़ कर दलितों को व्यर्थ के मुद्दों में उलझाए रखते हैं और दलित समाज बुद्ध को भूलकर इन्हीं में उलझकर अपनी ऊर्जा, धन, समय, बुद्धि बर्बाद कर रहा है .

 

यह भी बड़ा सच है कि ब्राह्मणत्व का जितना महिमामंडन भगवान बुद्ध ने किया उतना किसी भी काल में किसी और ने नहीं किया. और बुद्ध के बताए धम्म का जितना प्रचार यानी धम्म चक्र को जितनी गति ब्राह्मण ने दी उतनी किसी और ने नहीं दी. बुद्ध ने बहुत विस्तार से बताया कि ब्राह्मण किसे कहें?(Buddha)

 

साथ में यह भी कड़वा सच है भारत भूमि से भगवान बुद्ध के धम्म को लुप्त कराने में सबसे बड़ा हाथ समाज का शोषण कर रहे रूढ़िवादी ब्राह्मणों का ही था. वरना घोड़ों पर सवार आए कुछ गिने-चुने विदेशी आक्रांताओं के लिए पूरे जम्बूद्वीप में फैली बुद्ध धम्म की गहरी जड़ों को उखाड़ना और जलाना संभव नहीं था.

 

बुद्ध के काल में सारीपुत्त, महामोगल्यान, महाकाश्यप, मध्यकाल में काश्यप व कुमारजीव तो आधुनिक काल में महापंडित राहुल सांकृत्यायन, भिक्षु जगदीश कश्यप जैसे धम्म वाहकों पर सम्पूर्ण विश्व को गर्व है जिन्होंने प्रेम, करुणा व मैत्री की बुद्ध वाणी से मानव जगत की महान सेवा की.

 

 

भवतु सब्बं मंगलं.. सबका मंगल हो..सभी प्राणी सुखी हो 

   

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डॉ. एम एल परिहार

 

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