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Buddha : क्रोध के करोड़ कारण गिनाओ, क्रोध की अग्नि में पहले तो खुद को ही जलना पड़ता है…

Buddha
डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

Lord Buddha says, anger is like a hot iron rod which is thrown at another by holding it in the hand. Whether the next one burns or not, one’s own hands will definitely burn first. भगवान बुद्ध कहते हैं, क्रोध तेज गर्म लोहे की वह छड़ है जिसे हाथ में पकड़ कर दूसरे पर फेंकते हैं. अगला जले या ना जले, खुद के हाथ तो पहले जरूर जलेंगे.

 

ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन : व्यक्ति क्रोध करता है तो हजार तर्क खोजता है, कारण गिनाता है कि क्रोध करना जरूरी था. बच्चे को क्रोध में पीटता है तो कहता है, नहीं मारेंगे तो सुधरेगा कैसे. लेकिन कौन समझाए कि भला मारने से कोई सुधरा है. (Buddha)

 

टीचर स्कूल में बच्चों को पीटता है, इसलिए नहीं कि बच्चों को सुधारने से कुछ लेना देना है. असली वजह है अहंकार. जब भी उसके अहंकार को स्टूडेंट चोट पहुंचाता है तो वह क्रोध में पिटाई करता है. क्रोध के कई कारण व तर्क बता कर व्यक्ति क्रोध को सहारा देता है. (Buddha)

 

तथागत बुद्ध कहते हैं जिसने चित्त द्वारा, ध्यान द्वारा क्रोध को समझा, वह क्रोध से दूर हटने लगेगा क्योंकि क्रोध ने सिवाय दुख के पहाड़ के और कुछ नहीं बनाया. क्रोध ने दूसरों को भले ही न जलाया हो खुद को तो जलाया ही है. क्रोध से तुमने दूसरों पर कुछ अंगारे फेंके लेकिन अंगारों को पहले अपने भीतर पैदा करना पड़ता है. क्रोध की अग्नि में पहले खुद को जलाना पड़ता है.

 

गाली देने से दूसरे को चोट पहुंचे या नहीं लेकिन पहले खुद में गाली पैदा करनी पड़ती है. इसके लिए मन में दुखते घाव  चाहिए. गाली देने से पहले पूरे शरीर को तैयार करना पड़ता है नहीं तो क्रोध और गाली कैसे पैदा होगी. क्रोध कहीं आकाश से तो आता नहीं, ना ही क्रोध किसी कारखाने में बनता है. (Buddha)

 

बुद्ध कहते है -तुम भीतर से अपने को जलाकर अंगारे पैदा करते हो फिर उन्हें दूसरों पर फेंकते हो. दूसरे जले या ना जले तुम पहले ही जल चुके होते हो. क्रोध करने के बाद दंड भला कौन देगा, तुम तो पहले ही दंड पा चुके होते हो.

 

इसलिए बुद्ध बार बार कहते हैं कि क्रोध को समझो, उसे सहारा मत दो. उसका पालन पोषण मत करो. सपोर्ट मत करो. और जैसे ही तुम बिना सहारा दिए क्रोध को देखोगे, तुम पाओगे, यह तो जहर था. यह तो आत्मघाती था. तुम अब तक क्या कर रहे थे. क्रोध में अपने को ही मिटाने में लगे थे. फिर तुम क्रोध से धीरे धीरे दूर हटने लगोगे. और जो ऊर्जा, जो शक्ति क्रोध में व्यर्थ नष्ट हो होती थी वही ऊर्जा प्रेम, करुणा व मैत्री बन जाएगी. (Buddha)

 

 भवतु सब्बं मंगलं..सबका कल्याण हो. सभी प्राणी सुखी हो

 

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