राष्ट्रगान की गूंज में…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र
सुवर्ण महोत्सव आजादी का मनाने के लिए बेताब है हम सब,
मगर उसी आज़ादी का सूरज,आज भी कई गांव ढूंढ रहे है।
गद्दार,बेईमान और हुकूमशाहों की है ये आज़ादी,
आम इन्सानों की आवाजें तो यहां कब की बंद हुई है।
पढ़ा है किताबों में हमने स्वातंत्र्य,समता,बंधुता और भाईचारा,
लेकिन कल की वो सच्चाई आज इस लोकतंत्र में कहां है।
लगा हमको आज़ादी की रोशनी से ये सारा जहां जगमगा उठा है,
और जब बाहर देखा तो अराजकता की आग में ये सारा जहां जल रहा था।
बेईमान सियासत के खिलाफ बोलना भी अब यहां गुनाह है,
और ये सारा ज़माना यहां पर लोकशाही का जश्र मना रहा है।
बड़े शान से कहते है हम सब सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा,
और उसी हिंदोस्ता में ये कैसा मातम यहां पे फैला हुआ है।
सुवर्ण महोत्सव आजादी का उसमें शहिदों की याद कहां है,
उस राष्ट्रगान की गूंज में भी अब वो देशभक्ति का सूर कहां है।
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