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वृक्ष धरा का अनुपम श्रृंगार | Newsforum

©गणेन्द्र लाल भारिया, शिक्षक, कोरबा, छत्तीसगढ़

परिचय – प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (हिन्दी), केन्द्रीय विद्यालय, अंबिकापुर


 

 

तपती दोपहरी पैर में पड़ते छाले,

वृक्ष बिन छाँव के पड़ रहे हैं लाले।

दरख्त लाते नभ में बादल काले -काले,

जिससे जगत में नहीं जल की लाले।

नभ के नमी को वृक्ष करती आकर्षित।

शीतल बयार से धरा हो जाती हर्षित ।

फल फूल पत्र लदी वृक्ष शाखाएँ

मनमोहन लगती दृश्यगंम लाताएं।

प्राणी बहुत कर लिए वृक्षों भक्षण,

अब तो कर पर्यावरण का संरक्षण

संबंध रहा अटूट जीव जगत से,

तू नर ना बदल अपनी रंगत से।

वृक्ष धरा का अनुपम श्रृंगार है,

वृक्ष बिना धरा लू का अंगार है।

हरियाली युक्त है माह सावन,

पेड़ पौधों से जग है मन भावन।

वृक्ष है तो चलती शीतल मंद मंद बयार,

जीव जगत मस्तमौला झूमने को तैयार …


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