हम लिखते हैं नज़्म…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र
वो लिखते है गज़ल उर्दू के मोतियों को पिरोकर,
हम भी लिखते है नज़्म,हिन्दी की सादगी को लेकर।
नज़्म हो या गज़ल उस में गहराई होनी चाहिए,
पत्थर दिल भी पिघले,इतनी ताकत लफ़्ज़ों में चाहिए।
हर इक लफ्ज़ मेरा सभी दिलों को जोड़ना जानता है,
प्रीत के धागों से बुना ये लफ्ज़,रूह को भी पिघल देता है।
बस इतनी-सी कोशिशें है मेरी,उजड़ न जाएं ये चमन,
समता,मानवता और बंधुता से बंधा रहे ये वतन।
इन्सानियत की खुशबू से ही ये चारों दिशाएं महकती रहे,
संविधान की छांव में,ये लोकशाही का तिरंगा सदियों तक फड़कता रहे।
ख़ुद की मंजिलों के तलाश में,भूल न जाना कभी वो गुलामी का मंज़र,
लहू भरे पन्नों से कभी हट ना जाएं यहां सारे हिंदोस्ता की नज़र।
हर कोई यहां पे,अपनी ही धून में कितना खोया हुआ है,
देखो कभी वो आजादी का सूरज भी कितना धुंधला धुंधला सा हुआ है।
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