दुश्मन…
©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
परिचय- मुंबई, आईटी टीम लीडर
जिसे समझ न आए उसी समझानी चाहिए।
दुश्मन छोटा हो या बड़ा पर खानदानी चाहिए।
रुतबा, ओहदा सब हो दुश्मन के बराबरी का,
मौत दे हर रोज़ दस्तक, ऐसी ज़िंदगानी चाहिए।
सैलाब की तरह उमड़ पड़े, दोनों ओर लश्कर,
औजार जैसा भी हो दोनों को चलाने आनी चाहिए।
एक हुस्न भी मुंतज़िर हो, दुश्मन के घर,
इधर इश्क़ की तड़प भी रूहानी चाहिए।
नजरें हों तीर, हाथों में रहे शमसीर,
कत्ल ही नहीं माफ़ी की हुनर भी आनी चाहिए ।
बुढ़ापा हो या बचपन, सलामत रहे शौक़ अपना,
दुश्मन की खातिर हर पल नई जवानी चाहिए।
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