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कब कैसे अब कहां मिले | ऑनलाइन बुलेटिन

©गुरुदीन वर्मा, आज़ाद

परिचय– गजनपुरा, बारां, राजस्थान.


 

 

साथ सभी का छोड़ चले, छोड़ सभी को कहां चले।

हम तुम यहां पर कैसे मिले, कब कैसे अब कहां मिले।।

साथ सभी का छोड़ चले—————–।।

 

 

मौसम ने जब ली अंगड़ाई, फूलों की बहार चली।

बदली करवट फिर मौसम ने, अश्कों की बौछार चली।।

देख रहे हैं आँखों से हम, आज है जो झुकी हुई।

लब तो हिले, हम ना बोले, कब कैसे अब कहां मिले।।

साथ सभी का छोड़ चले——————।।

 

 

होता है अक्सर जैसा कि, शिकवे-गिले तकरार बहस।

ऐसा ही यहां हमसे हुआ, दर्द मिला कभी दिल को हर्ष।।

रंग चेहरों पर देख रहे हैं, कुछ है पीले, कुछ लाल सुर्ख।

चेहरे छुपे नहीं भेद खुले, कब कैसे अब कहां मिले।।

साथ सभी का छोड़ चले——————।।

 

 

अहम करें तो किसपे करें, हम ना मुफलिस, तुम ना नवाब।

वहम करें तो किसपे करें, हम ना मुजरिम, तुम ना खराब।।

हाथों में हम देख रहे हैं, लिखा क्या है अपना नसीब।

हाथ मिले ना हाथ हिले, कब कैसे अब कहां मिले।।

साथ सभी का छोड़ चले —————————।।

 


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