सितमगर | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन
©मजीदबेग मुगल “शहज़ाद”
गज़ल
छीनकर लेते हकदार का हक कैसे।
जालिम सितमगर ने मारी झक कैसे।।
कमजोर बुझदील पर जोर आजमाते।
खुदा इन को दुनिया मे दिया रख कैसे।।
हुकुमशाह बन बैठे लोकशाही में ।
इनकी सही चलती बस बक बक कैसे।।
सुना है चोर पर भी मोर होते है ।
वो दिन कब आये लगी टकी टक कैसे।।
पानी भी मोल लेकर पिना पडता है ।
कुदरती चीज पर सितमगरी हक कैसे।।
मजलुमो की दुवा में असर नहीं रहा।
फिरको में आदमी गया बहक कैसे ।।
बदलती दुनिया में बदलता रंग देखों ।
बुढ़े बाप पे बच्चे गये सरख कैसे ।।
‘शहज़ाद ‘ इन्सानियत खून में होना।
आदमी आदमी की करें परख कैसे ।।
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