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वाह ! नेता जी वाह | newsforum

©महेतरू मधुकर, पचेपेड़ी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

ठग, वोट पा, खुरसी पाई।

माने ल परही तोर चतुराई।।

सत्ता बर अपनाए कुटिल राह,

वाह ! नेता जी वाह……………………

जात-धरम की भेद बतलाई।

लड़ा देहे तंय ह भाई-भाई।।

का उचित देये सलाह,

वाह! नेता जी वाह…………………….

पइसा के बिस्तर म तंय सुते।

देखत नहीं कोई भूख म रोथे।।

बड़े उँचा होगे अब चाह,

वाह! नेता जी वाह…………………….

देवत फिरथस तंय झूठा भासन।

मालूम हे मिलथे कि नहीं रासन।।

भरसटाचार ल देथस पनाह,

वाह! नेता जी वाह…………………….

जन सेवा को तंय ह धंधा बना देहे।

सत्ता की लालच ह अंधा बना देहे।।

करत हस गुनाह म गुनाह,

वाह! नेता जी वाह…………………….

बड़े बिसवास लेके लोग नेता बनाथे।

दे ऊखर हक, पइसा तो सब कमाथे।।

अइसे काम कर, नवाय न परय निगाह,

फेर लोग गरभ ले कहय,

वाह! नेता जी वाह……………………


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