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आसान नहीं….

©कुमार अविनाश केसर

परिचय- मुजफ्फरपुर, बिहार


 

हर बार किसी की पीड़ा को सह लेना, है आसान नहीं।

हर बार क्षितिज पर नजर गड़ाना और गिनना तारों को

चंदा की शीतल-सी जलन और सूरज की सुनहरी तारों को।

आँखों के रस्ते किसी हृदय में घर लेना है आसान नहीं।

हर बार किसी की पीड़ा सह लेना, है आसान नहीं।

 

वह रोज क्षितिज पर तारों के जलते-चुभते झिलमिल ग़म को।

कभी आँख चुराती चंदा से, कभी भार- दबी नैना नम को।

मन से छिपाते दर्द किसी को कह देना आसान नहीं ।

हर बार किसी की पीड़ा को सह लेना, है आसान नहीं।

 

कुछ छिपा-छिपाकर भार बनी, जीवन के डगर की आह बनी।

शीतल आहों से बुनती-सी कुछ विकल प्राण की आह बनी।

दुःख भरे हृदय की धारों को गह लेना, है आसान नहीं ।

हर बार किसी की पीड़ा को सह लेना, है आसान नहीं ।

 

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कुमार अविनाश केसर

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