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अटल रत्न…

©बिजल जगड

परिचय- मुंबई, घाटकोपर


 

एक कर्म आदि योगी तब जन्म लेता है ,

तब पत्थर से फूट कर फूल जन्म लेता है ।

 

आसमान की चौकी शीशे का सूरज फिसलता है,

सितारें जब टिमटिमाए तब चांद जमीन पे उतरता है।

 

धर्म वीर अपने दोनो जहाँ दाव पर लगाता है।

देश को आगे बढ़ाने खुद भट्टी में जल जाता है ।

 

इतिहास आज उदास है ,कुछ पन्ने फाड़ लेता है ,

चुपके से पन्नो से निकलकर अटल मिल लेता है ।

 

याद का धुआं इस उम्मीद पे निकलता है,

आज एक कवि (में) ,कवि (अटलजी) को याद कर लेता है ।

 

Atal Ratna...

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