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शरदोत्सव | Onlinebulletin

©अशोक कुमार यादव ‘शिक्षादूत’, मुंगेली, छत्तीसगढ़


 

गगन में टिमटिमाती तारिका, वसुंधरा में बिखेर रही ज्योत्सना।

चंद्रमा की सोलह कलाएं, विधु किरण अमृत वर्षा तमिस्त्रा।।

समुद्र मंथन से प्रकट हुए, शशि,श्री,अमृत कलश,धनवंतरी।

शरद पूर्णिमा दिवस व्याह, महालक्ष्मी संग प्रभु चक्रपाणि।।

चंद्र चंद्रिका पीयुष धवल, ईश्वर श्रीकृष्ण ने महारास रचाया।

संग में नाचे ब्रज की गोपियां, थिरक-थिरक प्रेम गीत गाया।।

हिंदू धर्म के कोजागर व्रत, हरिप्रिया पूजा करते विधि-विधान।

उत्तर कोशल पायस कौमुदी, सर्वकामना करते सभी इंसान।।

जो वनिता करती अधूरा लंघन, उनके गृह दुःख के पहाड़ गिरे।

भाग्य और पुण्य का खेल यहां, जन कर्म करते चल धीरे-धीरे।।

जितेन्द्रिय भाव हृदय में रख, कर लक्ष्मी प्रतिमा की स्थापना।

स्वर्णिम दीपक प्रज्वलित कर, कमला से करो तुम कामना।।

बीत जाए जब एक प्रहर, लक्ष्मी को खीर करो अर्पण।

दीन-हीन को प्रसाद भोज्य दो, माता को करो मन समर्पण।।

मांगलिक गीत गाओ निशीथ, मंगलमय काज करो जागरण।

अरुणोदय काल स्नान,ध्यान, दीन,दुःखी को प्रतिमा अर्पण।।

मध्यरात्रि महालक्ष्मी विचरती, वर और अभय लिए संसार।

कौन जाग रहा भूतल पर ?, दूंगी ललना को सम्पदा अपार।।

विष्णुप्रिया की आरती करो, मन-वचन-कर्म से करो भक्ति।

नश्वर जगत है,नश्वर शरीर, प्रदान करती मां परलोक में सद्गति।।


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