मेरे लफ़्ज़ों की नई सौगात मगर जले अरमानों में…

©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र
नकाब उठाकर भी वो, नजरें झुकाए बैठें है,
वही शर्माना आपका हमारी सांसें बनकर धड़कती है।
चांद बनके कब आओगे तुम हमारे आंगन में,
हर लम्हा हमको सदियों जैसा ही लगता है।
धड़कने आज कुछ अलग सी चल रही है,
वही तेरी तस्वीर आज बार-बार याद आ रही है।
ये आरज़ू हमारी कहीं आरजू न बन जाए,
कुछ मांगी है सांसें हमने,वो टूटने से पहले दीदार हो जाए।
चाहत क्या होती है,ये कोई हमसे क्या पूछें?
हम तो दीए की तरह आज भी उन्हीं के लिए जर रहे है।
उन्हीं के खयालों में ये दिन और रातें गुज़र जाती है,
ये कैसी आशाएं है,फिर कल की उम्मीद दिखाती है।
शायरों की शायरी में तुमसे नायाब कोई नहीं,
और हम तो कहते है,आपके बिना ये चमन,चमन नहीं।
ख़ामोश दीवारों के संग संग गुज़र रही है ये जिंदगी,
मगर जलें अरमानों में,तुम्हारे लौटने की आरजू आज भी जिंदा है - – –

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