युद्ध का हाथी चारों दिशाओं से आने वाले तीखे बाणों को सहन करता है; उसी प्रकार वही मनुष्य श्रेष्ठ है और सुखी है जो… | Buddha
©डॉ. एम एल परिहार
Buddha : The elephant on which the king rides in the war, that elephant also tolerates sharp arrows coming from all four directions, similarly only that person is superior and happy who tolerates bitter words.
ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन: युद्ध में जिस हाथी पर राजा सवार होता है, वह हाथी चारों दिशाओं से आने वाले तीखे बाणों को भी सहन करता है उसी प्रकार वही मनुष्य श्रेष्ठ है और सुखी है जो कड़वे बोलों को सहन करता है.(Buddha)
भगवान बुद्ध एक बार कौशांबी में विहरते थे. वहां बुद्ध के विरोधी लोगों ने बुद्ध का अपमान कर भगाने के लिए गुंडों बदमाशों को धन, लोभ लालच देकर तैयार किया.
तथागत बुद्ध और भिक्षुसंघ जब भी नगर में भिक्षाटन को निकलते तो ऐसे लोगों का झुंड उनके पीछे हो जाता और भद्दी गालियां देता. तुम मूर्ख, चोर, गधे हो. नारकीय, पागल, पतित हो. वे भिक्षुओं पर कीचड़ भी फेंक देते थे. आए दिन ऐसे अपमान से भिक्खु भिक्खुणिओं का जीना मुश्किल हो गया.(Buddha)
आखिर एक दिन भिक्षु आनंद थेर भगवान के पास गए, वंदना कर कहा, भंते! इससे अच्छा है कि हम किसी दूसरे नगर चलें. आपका आदेश है कि हम धैर्य और शांति रखें लेकिन अब सहन करना मुश्किल हो गया है. लोग हमारे धैर्य को हमारी कमजोरी समझ रहे हैं.
भगवान बुद्ध हंसे और बोले, आनंद! यदि दूसरे नगर में भी ऐसी ही गालियां मिलेगी तो कहां जाएंगे ? नगर बदलने से समाधान नहीं होगा.(Buddha)
आनंद ! तुम गालियों को लो ही मत, शांत रहो. संघर्ष हमारा जीवन है. मानव कल्याण के लिए सत्य कहने वालों को यह कीमत चुकानी पड़ती है. अपमान को सहना करना पड़ता है, इसी में तुम्हारा कल्याण है. इसे अवसर समझो और निराश ना हो. यह परीक्षा की घड़ी है इसमें से गुजर कर तुम्हें मजबूत होना है. उनसे उलझने में अपनी ऊर्जा बर्बाद नहीं करनी है, तुम्हारी यात्रा लंबी है.
आनंद ! इसे समझो कि हर नगर में ऐसे लोग मिलेंगे. संसार में ज्यादातर लोग (बहुजन) दुष्ट (दुश्शील) प्रवृत्ति के हैं, बुरे हैं. वह उनका स्वभाव है क्योंकि वे अज्ञान में हैं. अपने स्वार्थ के लिए झूठ व अज्ञान का अंधेरा फैलाने वाले लोग सत्य को सहन कैसे करेंगे ? सत्य का उजाला उनके स्वार्थ के अंधेरे पर सीधी चोट करता है इसलिए बहुजन ऐसा ही व्यवहार करेंगे. (Buddha)
आनंद ! तुम उस हाथी की तरह कटु वचनों को सहन करो. मन को काबू करो, चित्त शांत रखो. मन, वाणी और शरीर पर संयम रखो. कटु वचनों व अपमान को सहन कर ही तुम धम्म, साधना व मानव कल्याण के पथ पर आगे बढ़ सकते हो. इसलिए उस प्रशिक्षित हाथी की तरह मनुष्यों में वही श्रेष्ठ हैं जो कटु वचनों को सहन कर लेता है.
ऐसा कहते हुए तथागत बुद्ध ने ये गाथाएं है कही–
अहो नागोव हंगामे, चापतो पतित सर।
अतिवाक्यं ति तिक्खिस्सं, दुस्सीलों हि बहुज्जनो।।(Buddha)
—- धम्मपद
सबका मंगल हो…सभी प्राणी सुखी हो…सभी निरोगी हो.
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