खिलती कलियां आज भी…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र
खिलती कलियां आज भी घबराई घबराई सी है,
बहती हवाएं क्युं इतनी बदली बदली सी है?
बदली बदली सी है कितनी ये नई फिजाएं,
दिन की रोशनी में भी कहां है बेखौफ सी हवाएं।
आज और कल में यहां कौन सा बदलाव हुआ है,
बताओं रंग ढंग बदलने से कौन-सा मन निर्मल हुआ है।
वही सोच,वही नीतियां नया रूप लेकर आई है,
कौन सी दिशाएं इस बदले जमाने में मुस्कुराती नज़र आई है।
धन की आरजू लिए वो कारवां यहां निकल पड़ा है,
मानवता,बंधूता और प्रेम का देखो कैसे अकाल पड़ा है।
कब देखेगा ये ज़माना,अश्क बहते हुए तुम्हारे,
कहानियां बनी हुई है तुम्हारी जिंदगी,जैसे वो चांद सितारें।
ये में कहता नहीं की,ये सारा ज़माना खराब हुआ है,
आज भी इस जमाने में,कुछ लोग फरिश्तों से कम नहीं है।
खिलती कलियां आज भी,घबराई घबराई सी है,
बदले जमाने में भी ये कैसी दिशाएं भी धुंधली धुंधली सी है।
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