उजड़ रहा है चमन थोड़ा-थोड़ा…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
उजड़ रहा है चमन थोड़ा-थोड़ा और ये समृध्दि की बात करते है,
बिगड़े है हालात और ये उसी को भी क्रांति और उन्नति कहते है।
कुछ नस्लें गद्दारों की और कुछ नस्लें देशभक्तों की ,
आज वही गद्दारों की नस्लें ही इस देश को उजाड़ना चाहते है।
कहां है अमन और शांति,कहां है भाईचारा और देशभक्ति की पुकार,
ये कैसी बहने लगी है हवाएं और चारों ओर फैला है अंधकार।
फिर बिखर जायेगा ये गुलशन देखो अपनी खुली आंखों से,
रो रही है वो शहीदों की निगाहें उसी इतिहास के पन्नों पन्नों पर।
सियासत हुई है बेईमान,अच्छाई हुई है यहां परेशान,
कहां है वो लोकतंत्र अब बेईमानों का ही चल रहा है यहां फरमान।
कौन सुनें आवाज सच्चाई की बिक गया है यहां पत्रकारों का अभिमान,
ये आगाज़ है गुलामी का,अब तो सुनो तुम वो गुंजता हुआ राष्ट्रगान।
आजादी के कुछ साल ही गुज़रे और देश में बहने लगी है विषमता की हवाएं,
अब कहीं भी देखो चारों तरफ दहशतगर्दी में डुबी है ये दिशाएं।
अरे अंधभक्तों,अब तो सुधर जाओ ये लोकतंत्र ही हमारी आशाएं है,
गर ये लोकतंत्र ही मिट जायेगा तो,चारों दिशाओं में जलती चिंगारियां है।
उजड़ रहा है चमन थोड़ा-थोड़ा और ये समृध्दि की बात करते है,
बिगड़े है हालात और ये उसी को भी क्रांति और उन्नति कहते है।
देखो बिक रहा है थोड़ा-थोड़ा कल सबकुछ बिक जायेगा,
और ये “सत्य मेव जयते”और अखंड हिंदोस्ता की बात करते है – – –
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