ठूंठ पुराने | Newsforum
©डॉ. संतराम आर्य, वरिष्ठ साहित्यकार, नई दिल्ली
परिचय : जन्म 14 फरवरी, 1938, रोहतक।
आज पेड़ पुराने बूढ़े हो गए
कभी जवां हुआ करते थे
सारे बच्चे चढ़ चढ़ ऊपर मजे लिया करते थे
आनंद आता इन बूढ़ों को
जब उनका बोझ झेलते थे
फल पत्ते टहनी तक तोड़ी
घोड़ी बना खेलते थे
सब कुछ दिया
रहा नहीं कुछ भी
अब हिल पाने तक मजबूर भए
आज ठूंठ पुराने लगते हैं
बच्चे सभी जवां हो गए
लोटा जो एक मिले पानी का
छाया अब भी दे सकते हैं
रखवाले की नहीं जरूरत
बिन देखरेख रह सकते हैं
अब ना खाद रही ना पानी मिलता
टूटी आस हुए दूर सभी
दो पल जो ठूंठ के पास बैठ लें
चूम लेंगे चैन से धरा कभी …