धम्मपद गाथा- नासमझ, मूढ़, मूर्ख मनुष्य अपना शत्रु स्वयं बनता है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन


©डॉ. एम एल परिहार
चरन्ति बाला दुम्मेधा, अमित्तेने व अत्तना।
करोन्ता पापकं कम्मं, ये होति कटुकप्फलं।।
दुर्बद्धि वाले मूर्ख लोग अपने ही साथ शत्रु जैसा व्यवहार करते हुए जीवन व्यतीत करते हैं, और वे ऐसे पापकर्म करते हैं जिसका फल बहुत कड़वा होता है, स्वयं अपने लिए ही भयंकर दुखदायी परिणाम होते हैं। (Dhammapada Gatha)
प्रकृति के सनातन सत्य को न समझकर प्रकृति के खिलाफ कोई व्यक्ति पाप कर्म करता है मन, वाणी, और शरीर से अकुशल, पाप कर्म करता है तो यह सिर्फ उस मूढ़ जन की नासमझी ही नहीं बल्कि स्वयं को दुखों में डालने जैसा है। दूसरों को कष्ट पहुंचे या न पहुंचे, स्वयं दुखों के जाल में जरूर फंस जाता है।(Dhammapada Gatha)
मूढज़न अपना शत्रु स्वयं होता है। क्रोध करने वाले से सामने वाले का नुकसान हो, न हो लेकिन क्रोध की अग्नि में जलने वाले का भारी नुकसान कर देता है। बुरे कर्मो। का नतीजा हमेशा ही बुरा होता है।(Dhammapada Gatha)
हम स्वयं से प्रेम करें, ध्यान साधना करें ताकि मन में विकार न पैदा न करें। इस प्रकार हम अपने साथ दुश्मनी का व्यवहार करना छोड़ दें, तो संसार में हमें कोई भी दुख नहीं दे सकता. (Dhammapada Gatha)
World में सभी लोग भले ही हमें सुख देना चाहे, किन्तु हम अपने साथ शत्रुता करना नहीं छोड़ते हैं, तो हम सुखी नहीं हो सकते, बल्कि दुखों के जाल में ही फंसे रहते हैं। (Dhammapada Gatha)
स्वयं से दुश्मनी करने का अर्थ है अपने मन,वाणी, शरीर को मैला करना और पापकर्म, बुरे कर्म करना. क्रोध, राग, द्वेष, अहंकार,नशा, मोह के मैल से सने रहना।(Dhammapada Gatha)
अपने बुरे कर्मों का कोई दूसरा दंड नहीं देता है स्वयं को अपने आप मिल जाता है। इस तरह वह खुद का दुश्मन हो जाता है। यह कितना अजीब है जिस पर साधारण मनुष्य गौर नहीं करता कि हम अपने दुश्मन खूद बन जाते है।(Dhammapada Gatha)
सबका मंगल हो… सभी प्राणी सुखी हो
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