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धम्मपदं- प्रज्ञावान, धीर व्यक्ति करूणा भाव से देखता है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

 

पमादं अप्पमादेन, यदा नुदति पण्डितो।

पाञ्ञापासादमारुय्ह, असोको सोकिनिं पजं।।

 

जब कोई समझदार, ज्ञानी व्यक्ति प्रमाद (असावधानी) को अप्रमाद से समाप्त कर देता है, जीत लेता है तब वह प्रज्ञारूपी प्रसाद (महल) पर चढ़ा हुआ शोक रहित हो जाता है। ऐसा शोक रहित धीर मनुष्य दूसरे शोक ग्रस्त विमुढज़नों (मूर्खजनों) अज्ञानियों की ओर ऐसे ही करूणाभाव से देखता है, जैसे ऊंचे पर्वत पर खड़ा हुआ व्यक्ति जमीन पर खड़े लोगों को देखता है।

 

Online bulletin dot in भगवान बुद्ध कहते हैं- जब पंडित, ज्ञानवान, विवेकशील, प्रज्ञावान व्यक्ति प्रमाद को अप्रमाद से हटा देता है यह वह अपने अप्रयास, ध्यान, ज्ञान व अनुभव से करता है। प्रमाद के अज्ञान और अंधकारको वह अप्रमाद का दीया जलाकर हटा देता है।

 

बेहोशी, असावधानी, आलस्य को होश, जागरूकता, ध्यान से हटा देता है। वह शोक दुख, चिंता से मुक्त हो जाता है। ध्यान साधना से प्रमाद के अंधेरे को तोड़कर अप्रमाद का प्रकाश पैदा करता है तो वह प्रज्ञा के शिखर पर चढ़ाई शुरू कर देता है।

 

वह स्वयं अ-शोक और धीर-वीर बन जाता है। वह प्रज्ञा के ऊंचे शिखर पर, ज्ञान के ऊंचे भवन पर विराजता है जैसे ऊंचे पर्वत के शिखर पर चढ़कर आसानी से जमीन पर खड़े लोगों को दूर-दूर तक देख सकता है।

 

ऐसे प्रज्ञावान व्यक्ति को जमीन पर खड़े उन लोगों के प्रति दया और करूणा के भाव पैदा होते हैं जो अज्ञानी, अनजान, असावधानी, नासमझ है, जो सांसारिक चीजों में उलझे हुए हैं, जो राग-द्वेष, मोह-लोभ में फंस कर दुखी है, अशांत है।

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प्रमाद को अप्रमाद से हटा देने वाले ऐसे पंडित, ज्ञानी, समझदार व्यक्ति के मन में दुखी, शोक ग्रस्त, पीड़ित लोगों को सही मार्ग बताकर उनके कल्याण का भाव पैदा होता है।

 

सबका मंगल हो… सभी प्राणी सुखी हो

 

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