जीवन का सार | newsforum
©राहुल सरोज, जौनपुर, उत्तर प्रदेश
जीवन है जीने के खातिर,
फिर मरने को आतुर क्यूं है,
जीत हार सब जीवन के पहलू,
फिर हार से व्याकुल क्यूं है।
तुझमें आनंद समाधि बसती,
क्यों भटके तूं अशांत शहर में,
तू एक अंश है परम ब्रम्ह का,
फिर दुःख का तूं आदि क्यूं है।
कर तलाश तूं ज्ञान समंदर,
बाहर नहीं खुद मन के अंदर,
पाप पुण्य सब तुझमें मुरख,
फिर बस पाप का भागी क्यूं है।
उठ निकल खुद की तलाश में,
मरने नहीं, जीने की आश में,
तूं खुद में एक ज्ञान ज्योति पुंज,
फिर तिमिर से आकुल क्यूं है।