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आस्था का जीवनसाथी चुनने की आजादी पर नहीं कोई प्रभाव, मर्जी से शादी लड़की का संवैधानिक हक- हाईकोर्ट | ऑनलाइन बुलेटिन

नई दिल्ली | [कोर्ट बुलेटिन] | पसंद से विवाह करना निजी आजादी का मूल तत्व है। आस्था का जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि विवाह में निजी पसंद की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद-21 का अंतर्निहित हिस्सा है।

 

दरअसल, मामले में एक शिकायतकर्ता ने शिकायत की थी कि पत्नी के परिजनों ने उसका अपहरण करने के बाद बेरहमी से पिटाई की थी। व्यक्ति ने महिला के घरवालों की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी की थी।

 

न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता की पीठ ने यह टिप्पणी शिकायतकर्ता पर हत्या के कथित प्रयास से जुड़े मामले में जमानत याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।शिकायतकर्ता का कहना था कि पत्नी के परिजनों ने उसका अपहरण किया और बेरहमी से पीटा।

 

शिकायत कर्ता ने बताया कि उनके ऊपर धारदार हथियारों से हमला भी किया। महिला ने परिवार की मर्जी के खिलाफ शादी की थी। जिससे नाराज घरवालों ने पिटाई की थी। जिसके बाद हाईकोर्ट की यह टिप्पणी आई है।

 

अदालत ने कहा, पुलिस से उम्मीद की जाती है कि वह ऐसे जोड़ों की सुरक्षा को त्वरित और संवेदनशीलता से कार्रवाई करे जिन्हें परिजनों समेत अन्य लोगों से खतरा हो।

 

कोर्ट ने कहा, यह ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ है कि शिकायत के बावजूद संबंधित थाने द्वारा सुरक्षा के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए गए।

 

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